वो महान खिलाड़ी जिसने अपने जीवन में एक भी ओलंपिक मेडल नहीं जीता 

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वर्तमान में जापान के टोक्यो शहर में ओलंपिक 2020 चल रहे हैं। टोक्यो ओलंपिक भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन के लिहाज से काफी शानदार रहा। कई खिलाड़ियों ने हार कर भी जीत हासिल की, यानी सोना जीतने से एक कदम पीछे रह गए। लेकिन खाली हाथ घर नहीं लौटे। सेमीफाइनल में हारने के बाद भी खिलाड़ियों ने अपने शानदार प्रदर्शन से कांस्य हासिल किया है। हालांकि कुछ खिलाड़ी ऐसे भी रहे, जो कांस्य भी नहीं जीत पाए, लेकिन उनके बनाए हुए रिकॉर्ड किसी मेडल से कम भी नहीं हैं। 

अगर महिला खिलाड़ियों की बात की जाए, तो टोक्यो ओलंपिक में पहला पदक (सिल्वर) ही मीराबाई चानू ने ही अपने नाम किया था। उसके बाद पी.वी. सिंधु, लवलीन कुछ ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपना लोहा मनवाया। लेकिन जब भी महान महिला खिलाड़ियो की बात आती है, तो एक नाम दिमाग में जरूर आता है, जिसके बारे में हमने किताबों में पड़ा था। जिसका नाम सुनते ही आपको उन पर गर्व होने लगता है। यहां तक की उनके नाम को लेकर एक मुहावरा सा बना गया था। लोग तेज भागती लड़कियों को कहने लगे, पीटी ऊषा बन रही है। जी हाँ पीटी ऊषा। यह भारत की पहली महिला खिलाड़ी थी, जो फाइनल ओलंपिक इवेंट तक पहुंची थी। 

“ट्रेक एंड फील्ड क्वीन” जैसी कई उपाधियों से किया गया सम्मानित 

पी.टी. उषा का जन्म 27 जून 1964 को केरल राज्य के कुतल्ली गाँव में हुआ। इनका पूरा नाम  पिलावुल्लाकंडी ठेकेपरम्बिल उषा है। पी टी उषा भारत की सबसे प्रसिद्ध महिला एथेलिट खिलाड़ी रही हैं।  जिन्हें “ट्रैक एंड फील्ड क्वीन” , “पियौली एक्सप्रेस” और “गोल्डन गर्ल” जैसी  उपाधियों से नवाजा गया था। पी टी उषा ने यह गौरव और सम्मान उस समय हासिल किया, जब महिलाओं को पढ़ने की भी आज़ादी नहीं थी। 

एक प्रतिस्पर्धा ने बदली जीवन की दिशा

पी.टी. उषा अपनी माँ की तरह एक टीचर बनना चाहती थी। परंतु एक प्रतिस्पर्धा ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। एक बार पी.टी. ऊषा की फिज़ीकल एजुकेशन की टीचर ने उनसे कहा कि तुम्हें सातवीं क्लास की एक लड़की के साथ दौड़ में मुकबला करना है। उस वक्त वो चौथी कक्षा में थीं, उनकी उम्र महज 12 साल थी। लेकिन इतनी बड़ी प्रतिद्ंवदी के सामने वो न सिर्फ खेलीं, बल्कि इतना शानदार खेलीं कि मुकबला जीत गईं। बस फिर क्या था, उनके जीवन ने नया मोड़ लिया और ऐथलीट की ट्रेनिंग शुरू हो गई। 

16 वर्ष की उम्र मे जीते 4 गोल्ड मेडल

इसके बाद ऊषा ने जल्द ही राज्य सरकार द्वारा 250 रू स्कॉलरशिप हासिल कर स्पोर्ट्स स्कूल में दाखिला ले लिया। यहाँ वह अपने पहले कोच ओ.एम.नांबियार से मिली। जो जल्दी ही उषा को पर्सनल पर्सनल ट्रेनर। इसके बाद पी टी उषा भारत की पहली नेशनल एथेलीट महिला चैंपियन बनी। जो सिर्फ 16 वर्ष की थी और पी टी ऊषा ने जल्दी ही 4 गोल्ड मेडल अपने बना लिए।

“पाकिस्तान ओपन नेशनल मीट” जो कराची में हुए, यह ऊषा का पहला इंटरनेशनल इवेंट था। इसके बाद 1980 में, ऊषा ने ओलंपिक में भाग लिया, जो मॉस्को में आयोजित थे।  उस वक्त ऊषा ओलंपिक में भाग लेने वाली सबसे छोटी महिला खिलाड़ी थी।  इसके अगले चार दशक तक भी कोई खिलाड़ी ऊषा के इस कम उम्र वाले रिकॉर्ज को नहीं तोड़ पाया। 

दिल्ली में आयोजित “एशियन गेम्स” के समय ऊषा की उम्र केवल  18 साल थी। इस एशियन गेम्स में उन्होंने एक गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीता था। 19 साल की ऊषा जब “एशियन ट्रैक एंड फील्ड” में पहुंची, तो उन्हें देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों में से एक “अर्जुन पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

भारत के लिए जीते कुल 103 मेडल

20 साल की उम्र  में भारत की सर्वप्रथम स्पोर्ट्सविमन बनकर उभरीं और फाइनल तक पहुंची। हालांकि इतने करीब पहुंच कर भी उनका गोल्ड जीतने का सपना पूरा न हो सका। “लॉस एंजिलिस ओलंपिक” में 400 मीटर रेस में 0.01 सेकंड से उषा पीछे रह गई। परंतु उषा ने हार नहीं मानी, और आगे एक साल बाद ही “एशियन मीट जकार्ता” में 5 गोल्ड और एक ब्रॉन्ज मेडल जीत कर देश का मान बनाए रखा।

पीटी ऊषा दो दशक तक खेलों की दुनिया में शिखर पर रहीं। पी.टी ऊषा ने अपने जीवन में कुल 103 मेडल भारत के लिए जीते और भारत को दुनियाभर में मशहूर कर दिया। आज भी पी.टी ऊषा का नाम भारतीय महिला खिलाड़ियों में सबसे पहली प्रेरणा है और हमेशा रहेगा।

नए खिलाड़ियों को ट्रेन करने की खाई कसम

अपने स्वास्थ संबंधी कारणों से 36 की उम्र मे पीटी ऊषा ने मैदान से पूरा तरह सन्यास ले लिया। उसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन नए खिलाड़ियों को ट्रेन करने में लगा दिया। 38 साल की उम्र में उन्होंने केरला में अपने एक ऐथलीट स्कूल की स्थापना की। पर अफसोस की दशकों के बाद भी “ट्रेक एंड फील्ड” से कोई ओलंपिक मेडल नहीं आ सका है। पीटी ऊषा इस बात पर काफी अफसोस जताती हैं, Brut.com के यूट्यूब चैनल के हवाले से वो कहती हैं कि ‘हमारे यहां जमीनी टेलंट को पहचान नहीं मिला पाती। खिलाड़ियों के लिए टेक्निकल और वैज्ञानिक ट्रेनिंग का अभाव रहता है। वो कहती हैं ‘यहां हर जगह का मेडल है बस एक ओलंपिक का नहीं, जिसे मेैं देखना चाहती हूँ।’ 

पी.टी ऊषा का यह सपना हाल ही में नीरज चोपड़ा ने सच कर दिखाया है। उन्होंने व्यकितगत भालाफेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल कर देश के हर पी.टी. ऊषा सहित हर भारतीय का सपना पूरा कर दिया है। इससे पहले  2008 में केवल अभिनव बिंद्रा ही निशानेबाजी में यह कमाल कर पाए थे। 2008 के बाद भारत ने पहला गोल्ड जीता है। इसके लिए पी.टी ऊषा ने भी नीरज चोपड़ा को बधाई देते हुए उनका धन्यवाद किया है। उन्होंने नीरज चोपड़ा को टैग करते हुए कहा कि ” 37 साल बाद मेरा अधूरा सपना साकार हुआ है। धन्यवाद मेरे बच्चे।”