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स्वामी विवेकानंद क्यों हैं युवाओं के आदर्श ?

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12 जनवरी को हर वर्ष भारत युवा दिवस के रूप में मानता है यह एक दिन भारतीय युवाओं को यह बताने,एहसास दिलाने के लिए काफी है कि वर्तमान परिवेश में वह कितना महत्वपूर्ण स्थान रखते है और भविष्य में कितनी आकांक्षाए उनको पूरी करना है।12 जानवर 1863 में विश्व को धार्मिक सहयोग , मानवता का ज्ञान देने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था।युवाओं के प्रति उनके दृष्टिकोण, मार्गदर्शन को ध्यान में राखते हुए 12 जनवरी को स्वामी विवेकानद को समर्पित करते हुए इस दिन को युवा दिवस का नाम दिया गया।
युवाओं के भटकते एवं अस्थिर मन को एकाग्रता तक पहुचने, अपनी ऊर्जा को राष्ट्र निर्माण,मानवीय सहयोग,उन्नत विचारो के निर्माण में लगाने का विचार युवाओं तक भली भांति पहुंचा और उसी  विचार ने आगे चलकर भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अनेक महापुरुष भारत को दिए।
स्वामी विवेकानंद ने भारत के सतरंगी धार्मिक परिवेश में समानता के सिद्धांत को सबके सामने रखा। 11 सितंबर 1893 को शिकागो में दिए गए उनके तीन मिनट के भाषण ने विश्व के समक्ष भारतीय परंपरा धार्मिक विश्वास की रखा।

उस भाषण ने यह बताया की विश्व मे सहिष्णुता का विचार पूरब से पश्चिम की और फैला है पश्चिमी आध्यात्मिक गुरुओ का अभिमान तोड़कर, पश्चिमी दुनिया का भारतीय धार्मिक परंपरा से साक्षात्कार कराया।

विवेकानंद ने पश्चिमी विश्व मे भरतीय धार्मिक,सांस्कृतिक विभिन्नता से संबंधित अलगाव और झगड़े के वहम को दूर किया विवेकानंद ने भारत के हर धर्म को भाईचारे ,सहनशीलता ,प्रेम का ज्ञान देने वाला बताया।
विवेकानंद ने अपने भाषण में भारत का सभु प्रकार के धर्म ,जाति, लिंग के लोगो को स्वयं में समाहित करने वाला रूप दिखाया। स्वामी विवेकानंद ने कहा ” मुझे  ऐसे राष्ट का नागरिक होने पर गर्व है जिसने विभिन्न धर्मों और सभी सताए हुए शरणार्थियों को शरण दी”। सस्वामी विवेकानंद ने धर्मो के अलग होते हुए ईश्वर के एक होने पर महत्व दिया उनका मानना था।उन्होंने धार्मिक टकराव,हिंसा, अलगाव को मानवता की श्रेणी से अलग माना।
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता वीभत्स उनकी वंशधर धर्मांधता पृथ्वी पर बहुत समय तक राज कर चुकी है।साम्प्रदायिकता ने पृथ्वी को हिंसा से भर है रक्त से नहलाया है ,सभ्यताओ का सत्यानाश किया है ,समाज को निराशा की गर्त में धकेला है स्वामी विवेकानंद के इस वक्तव्य में कोई दोराय नहीं है कि अगर साम्प्रदायिकता न होती तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक ऊपर उठ गया होता।
शिकागो के धर्म सम्मेलन में भारत को निमंत्रण न भेजना , भारतीय धर्मो की अवहेलना करने पर विवेकानंद ने पश्चिमी देशों को याद दिलाया कि रोमन साम्राज्य द्वारा यहूदियों के मंदिर गिराए जाने पर भारत ने यहूदियों की शुद्ध स्मृतियों को स्थान दिया था, भारतीय धर्म ने ही पारसी देशो के अवशिष्ट अंश को शरण दी थी, भारत ने सभी देशों के पीड़ितों का स्वयं में स्थान दिया।
विवेकानंद के अनुसार भारत सभी धर्मों की संवेदनशीलता में सिर्फ विश्वास नहीं रखता बल्कि सत्य मानकर स्वीकार करता है, जैसे भिन्न भिन्न नदियां अलग अलग उदगम स्थल से निकलकर समुद्र में जाकर मिल जाते है उसी प्रकार विभिन्न रुचियों वाले ,विभिन्न रास्तो वाले लोग अंत में आकर हमारे अंदर मिल जाते है।

परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े होने के बावजूद भारत आध्यात्मिक ज्ञान में स्वतंत्र है इस विचार से विवेकानंद ने सम्पूर्ण विश्व को अवगत कराया।

49 वर्ष के जीवन मे स्वामी विवेकानंद ने जिस प्रकार भारत की धार्मिक खूबसूरती को संसार में फैलाया, कोई दूर व्यक्ति नही कर सका। शिकागो में दिये गए भाषण के पश्चात पश्चिमी देशो में उन्हें ‘दैवीय वक्ता’ , ‘भारतीय ज्ञान का दूत’ बुलाया जाने लगा।

विवेकानंद ने भारत लौटकर भारत में सामाजिक ,राजनीतिक चेतना के विकास को अपना लक्ष्य बनाया

1898 में बेलूर मठ की स्थापना कर इसी परिपाटी को आगे बढ़ाया गया स्वामी विवेकानंद ने जिस साहस व शक्ति के साथ विश्व को भारत की असली पहचान ,पवित्रता ,धार्मिक परंपरा से परिचित कराया वह शक्ति आज तक युवाओ को उनके विचारों को संजोए रखने और आगे बढ़ने के प्रेरणा देती रही है भारत के नोजवान खून को हर कदम पर ऊर्जा देने वाले “युवा शक्ति के आदर्श ” स्वामी विवेकानंद को शत शत नमन।