ओवैसी ब्रांड सियासत के “मासूम दीवानों” से कुछ सवाल ??

Share

ओवैसी एक राजनेता हैं, उसी तरह से जैसे मोदी हैं, फर्क बस इतना है कि मोदी ने हिन्दू ध्रुवीकरण के नाम पर सत्ता हासिल की है और ओवैसी मुस्लिम ध्रुवीकरण के नाम पर देश का प्रमुख विपक्षी नेता बनना चाहते हैं।

हम न तो ओवैसी के विरोधी हैं और ना ही उनके समर्थक और ना ही उनसे मिलने के इच्छुक हैं। जैसा कि एक “सियासी मासूम भाई” ने फेसबुक कमेन्ट में लिखा है कि “ओवैसी जयपुर आए तो आपको भाव नहीं दिया।” ओवैसी हो सकता आपकी नज़र में हीरो हों, उसी तरह जिस तरह बहुत से लोगों की नजर में मोदी भी हीरो हैं।

हमारी नज़र में न ओवैसी हीरो हैं और ना ही मोदी। लोकतांत्रिक व संवैधानिक व्यवस्था का एक छोटे से कलमकार के रूप में खुद को रक्षक मानने वाले की हैसियत से मैं बता रहा हूँ कि ओवैसी और मोदी ब्रांड सियासत देश के लिए घातक है।

ओवैसी साहब को मैं बरसों से जानता हूँ और बारीकी से इनकी सियासत को जानता हूँ। इनकी और आरएसएस की सियासत देश को 2047 की बजाए 1947 में लेकर जाएगी। यह बात मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि मैं न मोदी का अंधभक्त हूँ और ना ही राहुल गांधी न ओवैसी का। हाँ, देश के प्रधानमंत्री के नाते मोदी जी का और सांसद होने के नाते राहुल जी व ओवैसी साहब का मैं सम्मान करता हूँ।

आप जरा सोचिए कि ओवैसी ब्रांड सियासत से देश में पहले से मौजूद हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण क्या और नहीं बढ़ेगा ? क्या इसका राजनीतिक लाभ सिर्फ भाजपा को नहीं मिलेगा ? क्या इससे साम्प्रदायिक सद्भाव व गंगा जमुनी तहजीब का टूटता ताना बाना और कमजोर नहीं होगा ?

क्या आपने इस बात पर कभी गौर किया है कि आपकी सियासी महत्वाकांक्षा की आड़ में जो साम्प्रदायिक आग भड़केगी, तब वे मुसलमान क्या करेंगे जो अपने गांव-ढाणी व कस्बे में गिनती के हैं ? क्या आप उनकी हंसती खेलती जिन्दगी में “साम्प्रदायिक पलीता” लगाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं ?

और अन्तिम बात यह है कि ओवैसी साहब के समर्थक अपने कमेन्ट और पोस्ट के स्क्रीन शाॅट लेकर रख लें, क्योंकि चन्द बरसों बाद आपको यह पछतावा होगा कि “हमने ओवैसी का बिना सोचे समझे समर्थन कर बेवकूफ़ी क्यों की थी ?”

किसी को बुरा लगा हो तो माफी चाहता हूँ और अब भी आपके हमारी बात समझ में नहीं आ रही है, तो हमें अनफ्रेंड कर सकते हैं।
(10-09-2021)

एम फ़ारूक़ ख़ान
सम्पादक इक़रा पत्रिका।