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रोबोट करेंगे काम, आदमी करेगा आराम ही आराम – रविश कुमार

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यह लेख पत्रकार रविश कुमार की वाल से लिया गया है – हमें लोगों को काम देने का तरीका खोजना होगा या लोगों को टाइम पास करने का तरीका खोज लेना होगा।” ड्यूश बैंक के सीईओ क्रेन के इस बयान पर हंसी आ सकती है। उनका अपना ही बैंक 2 साल में 4000 नौकरियां कम कर चुका है और आने वाले समय में बैंक के 97000 कर्मचारियों में से आधे समाप्त हो जाएंगे। उनकी जगह रोबोट आ जाएगा।

सर पर डेढ़ लाख बालों के पीस होते हैं। इन्हें काटना, सजाना और तराशना रोबोट के बस की बात नहीं है। उसी तरह ब्यूटिशियन, नर्स की नौकरी अभी रोबोट नहीं खा सकेगा मगर रिटेल सेक्टर से लेकर फूड सेक्टर तक में रोबोट तेज़ी से नौकरियां खा रहा है। ऑटोमेशन के ज़रिए 800 प्रकार के काम होने लगे हैं। हाई स्कूल की डिग्री वाले काम समाप्त हो जाएंगे। मॉल में कैश काउंटर पर, एयरपोर्ट पर टिकट काउंटर और टोल प्लाज़ा जैसी जगहों पर काम रोबोट करेगा। एक रोबोट 3 से 6 लोगों की नौकरी खा जाता है।

15 सिंतबर के सीएनएन टेक पर एक रिपोर्ट है। 75 लाख नौकरियां रोबोट के कारण जाने वाली हैं। 2024 तक फास्ट फूड सेक्टर ने 80,000 नौकरियां चली जाएंगी। मैकडॉनल्ड में कर्मचारियों की संख्या आधी रह जाएगी। रिसर्च के दौरान पता चला कि अमरीका में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मज़दूरी की दर दस साल से नहीं बढ़ी है। राज्यों में बढ़ी है जिससे तंग आकर कंपनियां रोबोट लगा रही हैं।

बिल गेट्स ने कहा है-

कि इससे सरकार के राजस्व पर फर्क पड़ेगा। रोबोट पर टैक्स लगाना चाहिए। इंटरनेशनल फेडरेशन आफ रोबोट के अनुसार अमरीका में 15 लाख रोबोट हैं। 2025 तक 30 लाख हो जाएंगे।

आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की-

एक प्राइवेट कंपनी pearson है उसकी रिपोर्ट के अनुसार अगले 2030 साल में अमरीका में 47 फीसदी नौकरियां चली जाएंगी। लोगों का कहना है कि पहले भी इस तरह के तकनीकि बदलाव के समय नौकरियों के ख़त्म होने की आशंका की बात होती रही है, मगर इस बार का हाल पहले जैसा नहीं है। कुलमिलाकर अभी किसी को पता नहीं है कि क्या होगा।

इस बीच भारत में टेलिकॉम सेक्टर में एक साल में 75,000 लोगों की नौकरी चली गई है। इन 75,000 लोगों को किन नए क्षेत्रों में काम मिला है, यह जानने का हमारे पास कोई ज़रिया नहीं है। नवभारत टाइम्स में रिपोर्ट छपी है। टेलिकाम सेक्टर ही चरमरा गया है। इसलिए उम्मीद कम है कि इन्हें इस सेक्टर में काम भी मिलेगा।

आज के बिजनेस स्टैंडर्ड में ख़बर है कि प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में आई टी सेक्टर की कंपनियां कम जा रही हैं। शुरूआती लेवल पर पहले इंजीनियर को तीन से सवा चार लाख सालाना मिल रहा था। आज कल डेढ़ से दो लाख मिल रहा है।
AICTE ने तय किया है कि अगले सत्र में 800 इंजनीयरिंग कालेजों को बंद कर देगी क्योंकि इस साल 27 लाख सीटें ख़ाली रह गईं हैं। 2017-18 के सत्र से 65 इंजीनियरिंग कालेजों को बंद करने की मंज़ूरी दे दी गई है। कालेज एक बार में बंद नहीं किये जाते हैं। इन्हें प्रोगेसिव क्लोज़र कहते हैं। 2014-15 में 77, 2015-16 में 125, 2016-17 में 149 कालेज बंद होने लगे। भारत में 10,361 इंजीनियरिंग कालेज है। 10 लाख सीटें ही बर पाती हैं। 37 लाख सीट हैं। मुमकिन है इंजीनियरिंग कालेज की दुनिया तेज़ी से बदल रही होगी। बदलना तो होगा ही।
4 नवंबर के हिन्दुस्तान टाइम्स मे नीलम पांडे ने लिखा है कि एम बी ए की पढ़ाई पूरी कर निकलने वाले छात्रों को नौकरी नहीं मिल रही है। उनके नौकरी मिलने की दर पांच साल में निम्नतर स्तर पर है। कारण अर्थव्यवस्था में धीमापन। निर्यात का घटना। 2016-17 में मात्र 47 फीसदी एम बी ए को नौकरी मिली है। 2015-17 की तुलना में 4 प्रतिशत की कमी आई है। इसके अलावा बाकी सब पोज़िटिव है।