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सरदार सरोवर के हजारों प्रभावितों का पुनर्वास आज भी अधूरा

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सरदार सरोवर के विस्थापन के भोपाल में नवंबर महिने में 6 दिन धरना-सत्याग्रह के दौरान, मध्यप्रदेश शासन के मंत्री सुरेन्द्रसिंह बघेलजी एवं वरिष्ठ अधिकारीयों से हर मुददे पर गहराई से चर्चा हुई थी। कुछ मुददे विधि मंत्रालय के समक्ष प्रलंबित है। यह जानकारी नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर और उनके साथियों दिनेश केवट, जितेन्द्र कहार, विजय मरोला, प्रशांत बडौले, राहुल यादव,  द्वारा विज्ञप्ति जारी कर दी गई है।

जिन पर अमल तत्काल होना है, ऐसे मुददों पर भी कोई विशेष प्रगती नहीं है। टीनशेड में रह रहे हैं आज भी हर तहसीलों में सैंकडो परिवार जिनका रोजगार,बच्चों की शिक्षा प्रभावित है। वहां बिजली,पीने के पानी तक की समस्या गंभीर है। आज भी कई किसानों की बिना भू-अर्जन डूबी हुई या टापू बनी हुई जिसके रास्ते कटे हैं, ऐसे किसानो की लाखो रूपयों की फसल बरबाद होते हुए भी उन्हें नुकसान भरपाई नहीं मिल पायी है। आश्वासन के अनुसार 1 महिने के अंदर सर्वेक्षण और भरपाई का भुगतान, आरबीसी के तहत होता था लेकिन आज तक नहीं हुआ हैं। कृषि विभाग से बीमा कंपनियों को भी भरपाई करने कहा है लेकिन उनसे आज तक न सर्वेक्षण हुआ है, न भरपाई।
नर्मदा घाटी के किसान ही नहीं, मजदूर,मछुआरे,केवट,कुम्हार सभी के पुनर्वास के हक बाकी होते हुए सरदार सरोवर जलाशय में आज भी 137 मीटर तक पानी भरा हुआ है। एकेक जिले में 30 से 50 पुल, रास्ते इत्यादि का निर्माण कार्य करना है, जिस पर पहले ग्राम समिति,ग्राम सभा की मंजुरी और फिर निर्माण होगा, यह सब एक दो साल तक नहीं हो पायेगा।

एसी स्थिति में यह जरूरी था और आज भी है कि कमलनाथ सरकार, पिछली म.प्र.सरकार ने जो धांधली की, झूठे शपथ पत्र दिये, पुनर्वास में ‘‘0″ बेलेन्स बताया तथा गुजरात फंड नहीं दे रही है जबकि बचे हुए कार्य के लिए हजारो करोड रू. की जरूरत है और गुजरात को कानूनन वह फंड देना ही है…… इन तमाम मुददों की बात उठानी है। कमलनाथ जी के साथ चारों मुख्यमंत्रीयों की बैठक, सर्वोच्च अदालत के 24/10/2019 के आदेश के अनुसार, तत्काल होनी थी, जो आज तक नहीं हुई है।
हम चाहते हैं कि म.प्र.सरकार इसमें संघर्षशीलता दिखाये लेकिन साथ ही साथ प्रदेश की नर्मदा घाटी जीवनरेखा होते हुए, किसानों, मजदूरों-मछुआरों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। म.प्र.राज्य स्तर के इस गंभीर संकट का सामना करने वाली मेहनतकश जनता का प्रतिनिधित्व सर्वोच्च अदालत में ही नही तो हर सामाजिक राजनीतिक मोर्चे पर भी सशक्त रूप से करना चाहिए। आज तक इसमें जोर से आवाज उठाने की जरूरत होते हुए भी वह नहीं हुआ है।
म.प्र. के नर्मदा घाटी के पीढीयों के निवासी, न केवल भगवान,अल्लाह लेकिन जीते जागते इंसान आदिवासी, किसान, मजदूर,मछुआरे,केवट,कुम्हार,दुकानदार आदि सभी तथा जानवर भी कराहते हुए न्याय के लिए गुहार लगाते हुए, संघर्षरत् है।