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क्या यही गुजरात मॉडल है ?

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रिहाई मंच ने सवाल उठाया कि क्या यही गुजरात मॉडल है। कमलेश तिवारी हत्याकांड में परिजन किसी को हत्या का दोषी मान रहे हैं और पुलिस किसी अन्य को, ठीक ऐसा ही हरेन पांड्या हत्याकांड के बाद हुआ था। पूरे मामले को लेकर तीन पक्ष उभर कर सामने आए हैं- एक परिवार का, दूसरा यूपी पुलिस का और तीसरा गुजरात एटीएस का। कमलेश तिवारी की हत्या के लिए उनकी मां कुसुम ने साफ तौर पर भाजपा नेता शिव कुमार गुप्ता को दोषी ठहराया। मुख्यमंत्री के साथ परिवार की मुलाकात पर असंतुष्टि व्यक्त करते हुए उन्होंने पुलिस पर मुलाकात के लिए दबाव डालने और जबरदस्ती लखनऊ लाने का आरोप भी लगाया। कहा कि सीएम के रुख से लगा कि सरकार से हमें महज सुरक्षा मिलेगी, इसके सिवा कुछ भी नहीं।
मंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तक को प्रदेश में जंगल राज की बात कहनी पड़ी और जब हत्याओं में भी जातिगत आधार पर भेदभाव किया जा रहा हो तो इस सरकार से न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है। झांसी में पुष्पेन्द्र यादव की हत्या कर पुलिस उसे मुठभेड़ का नाम देती है और एफआईआर तो दूर परिजनों को शव न देकर खुद ही उसका दाह-संस्कार कर देती है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की दो अज्ञात लोगों ने हत्या कर दी। इसके तुरंत बाद पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश ओपी सिंह अपने बयान में उसे शुद्ध रूप से आपराधिक घटना बताते हैं लेकिन और कुछ ही घंटों बाद पुलिस विवेचना की दिशा पूरी तरह बदल जाती है और मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता है। कमलेश के निजी कर्मचारी सौराष्ट्रजीत मीडिया को बताता है कि दोपहर करीब साढ़े बारह बजे दो व्यक्ति भईया से मिलने ऑफिस आए थे। दोनों ने कमलेश के पैर छुए और माफ़ी मांगी। कमलेश के कहने पर उसने खुद दोनों को चाय और दही-बड़े परोसे।
डीजीपी ओपी सिंह ने कहा था कि इसे दो लोगों ने अंजाम दिया और हत्यारे उनके परिचित बताए जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कमलेश को कई महीने से सुरक्षा उपलब्ध कराई गई थी और घर के नीचे तैनात सुरक्षाकर्मी ने कमलेश तिवारी से अनुमति मिलने के बाद ही दोनों को ऊपर जाने दिया था। इसी प्रकार आतंकी संगठन या सुपारी लेकर हत्या करने के साक्ष्य के सामने न आने के बाबत अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने मीडिया से कहा था कि हत्या निजी रंजिश के चलते की गई है। पुलिस इसी आधार पर मामले की जांच कर रही है। वहीं एसएसपी कलानिधि नैथानी ने कहा कि दोपहर साढ़े बारह बजे कमलेश अपने घर की पहली मंजिल स्थित हिन्दू समाज पार्टी के कार्यालय में कुशीनगर निवासी कर्मचारी सौराष्ट्रजीत सिंह के साथ बैठे थे। उसी समय भगवा कपड़े पहने दो युवक मिठाई के डिब्बे के साथ वहां आ गए। कमलेश संभवतः उन्हें पहचानते थे।
घटना स्थल को लेकर भी कई अंतर्विरोध हैं जैसे सुरक्षाकर्मी मुसफिर प्रसाद ने गोली चलने की आवाज़ नहीं सुनी और न किसी को भागते हुए देखा। मकान के ऊपरी भाग में किराएदार नीतू सिंह ने गोली की आवाज़ सुनी जबकि कार्यालय से लगे हुए कमरे में मौजूद कमलेश की पत्नी किरन तिवारी ने गोली चलने की आवाज़ नहीं सुनी बल्कि कार्यालय से कोई आवाज़ नहीं आई तो वह वहां गईं और देखा कि उनके पति लहूलुहान पड़े हैं। वहीं खालसा इन होटल के रिसेप्शनिस्ट का ये कहना कि उन्होंने उससे हज़रत अब्बास दरगाह के बारे में पूछा था।
खबरों के मुताबिक कमलेश के घर के पास भी दरगाह थी, शायद वो उसी के बारे में पूछ रहे थे। सवाल है कि अगर वह जगह से परिचित थे तो क्यों पूछ रहे थे। पुलिस के मीडिया में आए बयानों के मुताबिक हत्यारे या तो आसपास के ही रहने वाले हैं या फिर उन्होंने अच्छी तरह से रेकी के बाद हत्या की है। सीसीटीवी फुटेज में अभियुक्त पैदल जाते दिखाई दे रहे हैं वहीं सौराष्ट्रजीत का कहना है कि हत्यारे बाइक से आए थे।
मुहम्मद शुऐब ने अगले दिन के घटनाक्रम पर हैरानी जताते हुए कहा कि हत्या के बाद पुलिस महानिदेशक ने इसे आपराधिक कृत्य बताते हुए कहा था कि सीसी टीवी फुटेज और कुछ महत्वपूर्ण सुराग पुलिस के हाथ लगे हैं और 48 घंटे में इस हत्याकांड का खुलासा कर देंगे। पर दूसरे ही दिन से घटना स्थल पूरी तरह से कहानी से गायब हो गया। शक की सुई कमलेश तिवारी के विगत के विवादित बयानों को लेकर जान से मारने पर इनाम घोषित करने वालों की ओर जाने लगी।
वहीं कमलेश तिवारी की मां ने भाजपा नेता शिवकुमार गुप्ता पर बहुत स्पष्ट शब्दों में हत्या करवाने का आरोप लगाया है। उनकी मां ने यह भी कहा कि मंदिर पर कब्ज़े को लेकर उनके बेटे की शिवकुमार गुप्ता से दुश्मनी थी और दोनों के बीच कई मुकदमे भी हैं। मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जांच के नतीजे में इन सवालों के जवाब अवश्य मिलने चाहिए। उन्होंने पुलिस की कार्यशैली की आलोचना करते हुए कहा कि पुलिस अभी तक अभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं कर पाई है लेकिन साजिशकर्ताओं को पकड़ने का दावा करने और संदेहों एवं अन्य आशंकाओं को सार्वजनिक कर भय और शंका का माहौल उत्पन्न कर रही है।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि गुजरात एटीएस के हवाले से डीजीपी यूपी ने बताया कि हत्याकांड के मुख्य साजिशकर्ता रशीद अहमद खुर्शीद अहमद पठान, मौलाना मोहसिन शेख सलीम और मिठाई खरीदने वाले फैजान यूनुस को सूरत से गिरफ्तार कर लिया गया है। यह भी कि अभियुक्तों ने जिस नंबर से आखिरी बार कमलेश से बात की थी उसी नंबर से गुजरात के कई नंबरों पर बात की गई थी। इस दौरान सूरत के गौरव तिवारी को भी हिरासत में लिया गया लेकिन बाद में छोड़ दिया गया।
मूल रूप से यूपी के रहने वाले गौरव ने कमलेश को फोन करके उनके संगठन से जुड़ने की इच्छा जताई थी। रविवार दोपहर खुर्शेदबाद स्थित कमलेश के घर पहुंचे पार्टी के पश्चिम यूपी प्रभारी गौरव गोस्वामी ने रोहित सोलंकी नाम के युवक की फेसबुक प्रोफाइल पर लगी डीपी और सीसीटीवी कैमरों में दिख रहे हत्या के एक आरोपी का चेहरा मिलने के बाद कहा कि उस युवक ने कुछ महीने पहले ही फेसबुक पर प्रोफाइल बनाई थी। वह अक्सर फोन करके पार्टी से जुड़ने की बात कहता था। उसने तीन महीने पहले एक मोबाइल नंबर से बातचीत भी की थी। इस नंबर से उसने कई बार बात की और कमलेश तिवारी और पार्टी के बारे में जानकारी ली। पार्टी कार्यालय के बारे में भी पूछा कि अगर वह लखनऊ आकर रुकना चाहे तो क्या पार्टी कार्यालय में इंतजाम है। गौरव ने उसे कार्यालय में कोई व्यवस्था न होने की बात कहते हुए होटल में ठहराने के लिए कहा था। उसने बताया कि फ़िलहाल ये नंबर कुछ दिन से बंद है।
लखनऊ के जिस होटल खालसा इन में आरोपियों के रुकने की बात सामने आ रही है वहां से रोहित सोलंकी के नाम का आधार कार्ड भी मिला है। होटल के मुताबिक शेख अशफाक हुसैन और पठान मोईनुद्दीन अहमद ने अपने असली नाम और पता– गुजरात के सूरत में पद्मावती सोसायटी स्थित जिलानी अपार्टमेंट– से होटल में कमरा बुक किया था। वहीं 17 अक्टूबर को रेल बाजार के हैरिसगंज स्थित कान्हा टेलीकाम शॉप से सिम व मोबाइल सूरत निवासी अशफाक हुसैन की आईडी से खरीदा गया था।
एसटीएफ सूत्रों के मुताबिक वलसाड़ गुजरात से कानपुर आने वाली उद्योग कर्मी एक्सप्रेस से हत्यारोपी घटना के एक दिन पहले 17 अक्टूबर की शाम कानपुर आए थे। ट्रेन शाम करीब 7.45 बजे सेन्ट्रल स्टेशन पहुंची थी। इसके ठीक 15 मिनट बाद रात 8 बजे हत्यारोपी एक नंबर प्लेटफॉर्म से स्टेशन के बाहर निकले और रेलबाजार होकर हैरिसगंज स्थित टेलीकाम से सिम खरीदा। वहां से टाटमिल चौराहा होकर झकरकट्टी पहुंच गए। सवाल है कि जिस तरह मिनट दर मिनट उनके मूवमेंट का दावा है क्या ऐसा हत्यारोपियों की गिरफ्त से बाहर रहने पर किया जा सकता है।
अमर उजाला में 20 अक्टूबर को खबर थी कि एसएसपी ने सुराग लगाने के लिए जिन मोबाइल नंबर को खंगालने की बात कही उसमें एक नंबर हत्या से एक दिन पहले 17 अक्तूबर बृहस्पतिवार को ही एक्टिवेट हुआ था। उक्त नंबर राजस्थान से लिया गया था।
मीडिया में लगातार यह बात आई कि अभियुक्तों के मोबाइल बीच-बीच में बंद हो रहे थे या फिर संभवतः उसका नेटवर्क गायब हो रहा था। अपनी पहचान के साथ होटल लेना और मोबाइल खोलना बंद करना स्वाभाविक नहीं है और वो भी इतने हाई प्रोफाइल मामले में। बताया गया कि जांच एजेंसियों और एसएसपी को किसी ने गुमनाम पत्र भेजकर सूचना दी कि मलूकपुर के किसी मौलाना ने बरेली में हत्यारोपियों की मदद की थी। इस मौलाना के आतंकी संगठनों से भी संपर्क होने का दावा किया गया है। यह भी कहा गया कि दो साल में ही इस मौलाना ने काफी पैसा अर्जित किया। फिलहाल पुलिस जांच एजेंसियों द्वारा जांच शुरू करने की बात मीडिया में आई है पर यह बात निजी खुन्नस से ज्यादा कुछ नहीं लगती।
ऐसा वही व्यक्ति कह सकता है जो मौलाना का राज़दार हो या स्वयं उस नेटवर्क का हिस्सा रहा हो। अमर उजाला 20 अक्टूबर को लिखता है ‘तो छह घंटे से अधिक वक्त तक शहर में ही टहलते रहे हत्यारे’ वहीं खालसा इन होटल में वे 1:21 पर लौटे और 1:37 पर बिना जानकारी दिए चले गए। स्वाभाविक सवाल है कि क्या छह घंटे तक हत्यारे उसी शहर में रहेंगे जहां उन्होंने घटना को अंजाम दिया हो।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा अपनी सुरक्षा हटाए जाने को लेकर कमलेश तिवारी ने काफी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। 24 अक्टूबर 2017 को गुजरात एटीएस ने उबैद मिर्जा और कासिम सिम्बरवाला की गिरफ़्तारी की थी। इस गिरफ्तारी के बाद उनका सम्बन्ध आइएसआइएस से बताते हुए कहा गया कि उन्होंने पैगम्बर साहब पर अमर्यादित टिप्पणी को लेकर कमलेश को मार डालने की बात कही थी।
अख़बारों के मुताबिक इसका जिक्र एटीएस की चार्जशीट में भी है। कमलेश तिवारी ने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर भी अपनी हत्या की साज़िश रचने का आरोप लगाया था। उनकी मां द्वारा एक भाजपा नेता पर उनकी हत्या का आरोप लगाया जाना इस मामले की गंभीरता को और बढ़ा देता है। हत्यारे कमलेश तिवारी के पास करीब आधा घंटा तक रहे और इस बीच मृतक ने उन्हें चाय-पानी भी करवाया। इससे जाहिर होता है कि भगवा कपड़ों में आए हत्यारों को वह पहले से जानते थे। हत्यारों ने चाकू से उनका गला काटा, चाकू ले जाकर होटल में रखा और रिवाल्वर व मिठाई का डिब्बा घटना स्थल पर ही छोड़ गए। अभियुक्त न सिर्फ डिब्बा बल्कि उसका बिल भी साथ लाए थे। सवाल है कि ऐसे सुबूत मौके पर कैसे छूट गए, जिनसे आसानी से उनकी पहचान हो सके।
यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि सूरत में मिठाई की दुकान पर सीसीटीवी कैमरे से लेकर लखनऊ के होटल तक उन्होंने अपनी अपनी पहचान नहीं छुपाई। मुख्य सचिव (गृह), डीजीपी और एसएसपी के शुरूआती बयानों के बरअक्स मिठाई के डिब्बे को केंद्र में रखते हुए जांच एटीएस गुजरात तक पहुंच गई और आनन-फानन में अभियुक्तों की गिरफ्तारी से पहले साज़िशकर्ताओं की गिरफ्तारियां भी हो गईं।
इस बीच कई ऐसी चीज़ें घटीं जो जांच की दिशा पर सवाल उठाती हैं। बिना अभियुक्तों की गिरफ्तारी उनके आने जाने का समयबद्ध विवरण उनमें से एक है। सबसे बड़ी बात घटना और शासन प्रशासन के व्यवहार को लेकर कमलेश की मां के बयान हैं जो सरकार और जांच एजेंसियों की मंशा पर ही सवाल उठाते हैं। वह संभावित हत्यारे का नाम पूर्णविश्वास के साथ लेती हैं। फिर मुख्यमंत्री आवास जाने के बारे में स्पष्ट कहती हैं कि उन्हें वहां जबरदस्ती ले जाया गया और वह मुलाकात से संतुष्ट भी नहीं हैं। तीसरी बात सबसे अधिक चुभने वाली है जब वह वाराणसी में अपने बेटे के अस्थि विसर्जन के बाद पत्रकारों से कहती हैं कि उनपर पुलिस का पहरा है और एक तरह से परिवार नज़रबंद है।
परिवार को सुरक्षा देना और उसकी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए निगरानी करने में काफी अंतर होता है। आखिर ऐसा क्या छुपाने या किस चीज़ से रोकने के लिए किया जा रहा है। सवाल कई हैं। क्या राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना ऐसा हो पाना संभव है। क्या इसीलिए जांच के दौरान ही इसके विवरण और कहानी के सूक्ष्म बिंदुओं को समाचार माध्यमों को लीक किया जा रहा है। एक खास विचार के लोग ट्विटर से लेकर तमाम सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और जांच के मिठाई के डिब्बे वाले पक्ष पर ऊर्जा खर्च कर रहे हैं। क्या यह सब बेसबब है?
कानून के रखवाले के भेस में कानून को ठेंगा पहले भी दिखाया गया है। कमलेश तिवारी ने हिंदू समाज पार्टी बनाई थी। उससे पहले वह हिंदू महासभा में थे। उन्होंने मुसलमानों‍ भारत छोड़ो अभियान चलाने की भी घोषणा की थी। वह गोडसे को हर घर में स्थापित करना चाहते थे। योगी सरकार ने उनकी सुरक्षा हटा ली थी जिसको लेकर वह बहुत खिन्न थे‍‍। अखिलेश सरकार ने उन पर रासुका लगाया था। वह भी इस तरह कि उच्च न्यायालय से सरकार के निर्णय के खिलाफ उनको तुरंत राहत मिल जाए और हुआ भी यही। कमलेश तिवारी अंदर गए और हाईकोर्ट ने सरकार की रासुका की कार्रवाई को खारिज कर दिया।‍‍‍‍ हुआ यह था कि सरकार ने एक साल के लिए एक साथ रासुका लगा दिया था। जबकि कानून के हिसाब से एक बार में रासुका मात्र तीन महीने के लिए लगाया जा सकता है और फिर तीन-तीन महीने का विस्तार देते हुए किसी को अधिकतम एक साल तक निरूद्ध रखा जा सकता है।
इस तरह अखिलेश सरकार ने कठोर कार्रवाई भी कर दी थी और उसके बाहर आने का रास्ता भी साफ कर दिया था। लोकतंत्र में किसी को किसी की हत्या की अनुमति नहीं दी जा सकती चाहे हत्यारा किसी समुदाय, जाति का आम या खास आदमी हो या स्वयं पुलिस बल या किसी एजेंसी का। कानून तोड़ने वाले को कड़ी सज़ा मिलनी ही चाहिए।‍‍‍ जब तक ऐसा नहीं होता कानून के राज की बात करना ही अर्थहीन है। उत्तर प्रदेश की हालत से हैरान सुप्रीम कोर्ट ने भी यहां जंगल राज होने की बात कह दी है।