राफेल मामले में ईमेल का चक्कर

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अब एक ईमेल सामने आया है जो पहले इंडियन एक्सप्रेस के माध्यम से सामने आया फिर उसे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस वार्ता में दिखाया। वह ईमेल फ्रांस के एयरबस के तत्कालीन सीईओ गुलियाम फौरी की ओर से उनके एशिया सेल्स हेड मांटेक्स और फिलिप को लिखा गया है।

आजतक की खबर का यह अंश पढ़े इसमे बहुत सी बातें स्पष्ट हो जाएंगी। आजतक के अनुसार

” कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल के मुद्दे को लेकर एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए हैं. मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता ने एक ईमेल के हवाले से कई गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने आरोप लगाया कि राफेल डील पर हस्ताक्षर करने से 10 दिन पहले ही अनिल अंबानी ने फ्रांस के रक्षा मंत्री से मुलाकात कर कहा था कि जब पीएम आएंगे तो एक एमओयू (राफेल डील) साइन होगा, जिसमें मेरा नाम होगा. ADS ईमेल में क्या लिखा है? ‘आपकी जानकारी के लिए, अभी फोन पर सी. सालोमन (सालोमन जेवाई ले ड्रायन के सलाहकार हैं, जो सोमवार को हुई मीटिंग में मौजूद थे) से बात हुई. ए. अंबानी इस हफ्ते मंत्री के ऑफिस आए (उनकी यह यात्रा गुप्त थी और पहले से ही तय थी) थे. मीटिंग में उन्होंने (ए. अंबानी ने) बताया कि वह कॉमर्शियल हेलोस पर पहले एएच के साथ काम करना चाहते हैं और बाद में डिफेंस सेक्टर में.  उन्होंने (ए. अंबानी) बताया कि एक एमओयू तैयार किया जा रहा है, जिस पर प्रधानमंत्री के दौरे के समय दस्तखत किए जाएंगे.’ ईमेल किसने किसको लिखा? यह ईमेल एयरबस के तत्कालीन सीईओ गुलियाम फौरी की ओर से कंपनी के एशिया सेल्स हेड मॉन्टेक्स और फिलिप को लिखा गया था. इसकी कॉपी श्ली, क्लाइव, मॉडेट, डोमिनिक, चॉम्सी और निकोलस को भेजी गई थी.

राहुल के आरोप राहुल गांधी ने ईमेल का हवाला देते हुए मंगलवार को कहा, ‘एयरबस कंपनी के एग्जक्यूटिव ने ईमेल में लिखा कि फ्रांस के रक्षा मंत्री के ऑफिस में अनिल अंबानी  गए थे. मीटिंग में अंबानी ने कहा था कि जब पीएम आएंगे तो एक एमओयू साइन होगा, जिसमें अनिल अंबानी का नाम होगा.’ राहुल ने कहा कि डील पर दस्तखत होने से पहले राफेल डील के बारे में न तो भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री को मालूम था, न ही एचएएल को न ही विदेश मंत्री को. लेकिन राफेल डील से 10 दिन पहले अनिल अंबानी को इस डील के बारे में मालूम था. इसका मतलब है कि प्रधानमंत्री अनिल अंबानी के मिडिलमैन की तरह काम कर रहे थे. सिर्फ इसी आधार पर टॉप सीक्रेट को किसी के साथ शेयर करने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए. उन्हें जेल भेजना चाहिए. यह देशद्रोह का मामला है। ”
इस पर सरकार की तरफ से यह प्रतिक्रिया आयी कि, यह ईमेल राहुल गांधी को मिला कहां से है? यह सवाल उठाया है मंत्री रविशंकर प्रसाद ने।
दूसरी प्रतिक्रिया अनिल अंबानी की ओर से आयी है कि, यह ईमेल एयरबस कंपनी से सम्बंधित है राफेल से नहीं। अतः राहुल गलतबयानी कर रहे हैं।
सरकार के मंत्री रविशंकर प्रसाद का यह कहना है कि यह ईमेल राहुल गांधी को मिला कहां, यह सवाल उनका सही है पर यह सवाल इस ईमेल से जो संदेह उठ रहा है उसका समाधान नहीं कर रहा है बल्कि संदेह को और बढ़ा दे रहा है। कहाँ से मिला है यह तो सरकार राहुल से सरकार की तरह पूछे पर जो संदेह उठ रहा है उसे तो साफ करे।
अनिल अंबानी का यह कहना कि यह ईमेल एयरबस के संदर्भ में है । वे भी सही कह रहे हैं। पर यह ईमेल प्रधानमंत्री के पेरिस यात्रा और जिस एमओयू के हस्ताक्षर करने की बात कह रहा है वह एमओयू किस बारे में है यह अनिल अंबानी नहीं बता रहे हैं और न ही यह रविशंकर प्रसाद जी ही बता रहे हैं। वे तो इसी बात पर नाराज़ हैं कि यह मेल राहुल को मिला कहां से ।
ईमेल बहुत लंबा नहीं है। एक ही पृष्ठ का है और उसमें भी चंद लाइनें ही महत्वपूर्ण हैं। यह ईमेल प्रधानमंत्री नरेंद मोदी जी की यात्रा जो 9 अप्रैल से 15 अप्रैल तक संभावित है के संदर्भ का उल्लेख करता है। मेल ज़रूर एयरबस के सीईओ से सम्बंधित है और इसमें राफेल का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। पर जिस सम्भावित एमओयू के जारी होने का ज़िक्र किया गया है वह कौन सा एमओयू है यह न तो अनिल अंबानी बता रहे हैं और न ही सरकार बता रही है।

अब कुछ तिथियां और तथ्य पुनः याद कीजिये।

  • 25 मार्च 2015 को बंगलुरू में डसाल्ट के सीईओ एचएएल के साथ सौदा पूरा होने की बाद कहते हैं और यह कहते हैं कि बस थोड़ी औपचारिकता शेष है।
  • 8 अप्रैल को विदेश सचिव जयशंकर यह कहते हैं कि वे पीएम की कूटनीतिक यात्रा में व्यापारिक सौदों को अधिक महत्व नहीं देते हैं। व्यापारिक सौदों की बात अलग चैनल से चलती रहती है। पर इतना उन्हें जानकारी है कि राफेल विमान के सम्बंध में होने वाला करार डसाल्ट और एचएएल के बीच काफी हद तक तय हो गया है।
  • 28 मार्च 2015 को अनिल अंबानी की कम्पनी 5 लाख की पूंजी से गठित होती है और उसी के बाद एचएएल इस दौड़ से बाहर हो जाती है और अनिल अंबानी को दसॉल्ट की ऑफसेट पार्टनरशिप मिल जाती है।
  • इसी बीच यूपीए कालीन 126 विमानों का समझौता रद्द हो जाता है और 36 विमानों का नया समझौता हो जाता है।

अब इस ईमेल से जो सन्देह उठता है उसके निम्न कारण हैं।

  • अनिल अंबानी के हवाले से 9 अप्रैल से 15 अप्रैल के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पेरिस यात्रा के दौरान किस एमओयू MOU की चर्चा की गयी है?
  • पीएम के कूटनीतिक इंगेजमेंट की इतनी जानकारी कि वे फ्रांस यात्रा के दौरान क्या क्या करेंगे अनिल अंबानी को कैसे पता है और यह एक ईमेल में दर्ज हो गया है ?

राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा

” फ्रांस के रक्षामंत्री से बात करने के बाद अंबानी ने कंपनी बनाई. अनिल अंबानी फ्रांस के रक्षामंत्री से मिले और कहा कि कुछ दिनों में पीएम मोदी एक एमओयू साइन करेंगे जिसमें उसका यानी अनिल अंबानी का नाम होगा। लेकिन जब इस बारे में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और विदेश सचिव से पूछा गया तो उन्होंने कोई जानकारी होने से मना कर दिया। लेकिन अनिल अंबानी को 10 दिन पहले ही पता था कि डील होने वाली है. उसके अलावा सिर्फ प्रधानमंत्री को मालूम था। तो पीएम मोदी ने अनिल अंबानी को जानकारी दी है और मिडलमैन का काम किया है. ये गोपनीयता कानून का उल्लंघन है.’”
इस मेल के खुलासे का राफेल विवाद से कोई सीधा संबंध नहीं है। क्योंकि इस खुलासे का एक सिरा जुड़ा है प्लेन बनाने वाली कंपनी एयरबस से. जिसका रफाएल सौदे से कोई संबंध नहीं है।  लेकिन दूसरा सिरा जुड़ता है फ्रांसीसी रक्षा मंत्रालय से. जिसकी राफेल सौदे में पूरी पूरी भूमिका है। नए सौदे के मुताबिक ये इंटर-गवर्मेंट डील है. माने भारत तक राफेल पहुंचाने की जिम्मेदारी फ्रांस सरकार की है। अनिल अंबानी की मुलाकात जब रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों से हुई, उस वक्त क्या सिर्फ हेलिकॉप्टर पर ही बात हुई या रफाएल का मुद्दा भी आया?  9 अप्रैल 2015 में पीएम मोदी के फ्रांस दौरे के दौरान अनिल अंबानी भी पीएम मोदी के साथ वाले डेलीगेशन का हिस्सा थे.। इसी दौरे के दौरान 36 राफेल विमानों के सौदे की घोषणा पीएम मोदी और फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने की थी. ये ऐलान दोनों देशों के जॉइंट बयान में हुआ था । वही हुआ जो ईमेल कह रहा है। अनिल अंबानी यह तो कह रहे हैं कि यह ईमेल एयरबस से जुड़ा है पर यह नहीं बता रहे हैं कि जिस एमओयू का उल्लेख है वह एमओयू किस बारे में हैं।

© विजय शंकर सिंह