सेना की ज़मीनें बेचने के लिए क़ानून बदलने की तैयारी

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Manoj

पिछ्ले 250 सालों में पहली बाद केंद्र सरकार डिफेंस लैंड पॉलिसी में बड़ा बदल-फेर करने जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मोदी सरकार ने इस पॉलिसी से जुड़े नए नियमों को हरी झंडी दिखा दी है। इसके तहत सार्वजनिक प्रोजेक्टस के लिए सेना से जो जमीन ली जाएगी उसके बदले उतनी ही वैल्यू के इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की परमिशन होगी, यानी डिफेंस से जुड़ी जमीन लेने के बदले में उतनी ही वैल्यू की जमीन दी जाएगी या बाजार की कीमत के हिसाब से भुगतान किया जाएगा।

डिफेंस लैंड पॉलिसी में सन् 1765 के बाद पहली बार बड़ा बदलाव किया जा रहा हैं। उस वक्त अंग्रेजी सरकार की हुकूमत में बंगाल के बैरकपुर में पहली कैंटोनमेंट (छावनी) बनाई गई थी, उस वक्त सेना से जुड़ी जमीन को मिलिट्री के कामों के अलावा किसी और काम के लिए यूज करने पर पाबंदी लगाई गई थी। बाद में सन् 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल-इन-काउंसिल ने आदेश दिया था कि किसी भी छावनी का कोई भी बंगला और क्वार्टर किसी ऐसे इंसान को देने की परमिशन नहीं होगी जो सेना से जुड़ा नहीं हो।

लेकिन अब सरकार डिफेंस लैंड रिफॉर्म्स पर सोच विचार करते हुए कैंटोनमेंट बिल-2020 को फाइनल करने में लगी हुई है, ताकि कैंटोनमेंट जोन्स में भी डेवलपमेंट हो सके। रिपोर्ट के मुताबिक रक्षा मंत्रालय के ऑफिसरों का कहना है कि मेट्रो की बिल्डिंग, रोड, रेलवे और फ्लाइओवर जैसे बड़े सार्वजनिक प्रोजेक्ट्स के लिए मिलिट्री की जमीन की जरूरत है।

कैंटोनमेंट जोन में मिलिट्री अथॉरिटी तय करेगी जमीन की कीमत

नए नियमों के तहत आठ EVI प्रोजेक्ट्स की पहचान की गई है। इनमें बिल्डिंग यूनिट्स और रोड भी शामिल हैं। इसके तहत मिलिट्री की छावनी की जमीन की कीमत वहां की लोकल मिलिट्री अथॉरिटी की अगुवाई करने वाली कमेटी तय करेगी, वहीं छावनी से बाहर की जमीन की कीमत डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट तय करेंगे।

एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने भी एक नॉन-लेप्सेबल मॉडर्नाइजेशन फंड के लिए रेवेन्यू जुटाने के लिए डिफेंस की जमीन को मॉनेटाइज करने का सुझाव दिया है। अधिकारियों के मुताबिक डिफेंस मॉडर्नाइजेशन फंड बनाने के ड्राफ्ट कैबिनेट नोट पर भी चर्चा परिचर्चा हो रही है, इस बारे में जल्दी ही अंतिम फैसला लिया जाएगा और कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

DMA को है वित्त मंत्रालय के फॉर्मूले पर ऑब्जेक्शन

दूसरी ओर डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (DMA) पिछले साल सरकार से कह चुका है कि सेना की जमीन के मॉनेटाइजेशन से मिलने वाली आय का उपयोग शायद ही सेना के जवानों की जरूरतें पूरी करने के लिए किया जाएगा। DMA ने सुरक्षाबलों का बजट कम होने का मामला भी उठाया था, साथ ही वित्त मंत्रालय के इस सुझाव पर भी ऑब्जेक्शन उठाया कि सेना की जमीन को बेचने से मिलने वाले फंड का 50% हिस्सा कंसोलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया को दिया जाएगा।

रक्षा मंत्रालय के पास हैं 17.95 लाख एकड़ जमी

डायरेक्टोरेट जनरल डिफेंस एस्टेट्स के मुताबिक रक्षा मंत्रालय के पास करीबन 17.95 लाख एकड़ जमीन है। इसमें से 16.35 लाख एकड़ ज़मीन 62 छावनियों से बाहर है। इसमें रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाली पब्लिक सेक्टर यूनिट्स जैसे- हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, भारत डायनामिक, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, भारत अर्थ मूवर्स, गार्डन रीच वर्कशॉप्स, मझगांव डॉक्स शामिल नहीं हैं, साथ में ही 50,000 किलोमीटर सड़कें बनाने वाला बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन भी शामिल नहीं है।

देश में छावनियों के बाहर सेना की काफी जमीने है। इनमें कैंपिंग ग्राउंड्स, खाली पड़ी छावनियां, रेंज और एयरफील्ड्स भी आते हैं। इनका जमीनों का कुल अंदाज़ा लगाया जाए तो इसमें इतनी ज़मीन शामिल है कि दिल्ली जितने 5 महानगर आ सकते हैं।

1991 में तत्कालीन रक्षा मंत्री शरद पवार ने सबसे पहले छावनियों को खत्म करने का सुझाव रखा था, ताकि अतिरिक्त जमीनों का इस्तेमाल हो सके, हालांकि, इस पर वाद – विवाद होने के बाद उन्होंने कहा था कि छावनियों को खत्म नहीं करा जाएगा।