व्यक्तित्व – “विष्णु प्रभाकर” एक कालजयी लेखक

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विष्णु प्रभाकर, एक ऐसे कालजयी लेखक जिनका साहित्य एक सागर है। और इस साहित्य के मोती हर उम्र के लिए, हर स्थिति के अनुसार आपको हर जगह मिल जाएंगे। विष्णु प्रभाकर की कई कहानियों से आप कई बार अपने स्कूल की किताबों में रूबरू हुए होंगे। लेकिन विष्णु प्रभाकर एक ऐसा नाम, एक ऐसे साहित्यकार थे। जिनकी किताबों में हमेशा ऐसे व्यक्ति के प्रति चिंता नजर आती है, जो सताया जा रहा है। विष्णु प्रभाकर के “आवारा मसीहा” ने उन्हें साहित्य जगत का मसीहा बना दिया। प्रभाकर जी के जन्मदिन पर जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ बातें।

उत्तर प्रदेश के मीरपुर में जन्मे थे विष्णु प्रभाकर

प्रभाकर जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के मीरपुर इलाके में 21 जून 1912 में हुआ था। पर उनकी प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा, सब पंजाब से ही हुई। उन्होंने 1929 में हिसार के चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसके बाद एक नौकरी करते हुए प्रभाकर जी ने पंजाब विश्वविध्यालय से हिंदी-संस्कृति में भूषण, प्राज्ञ, विशारद, प्रभाकर आदि की परीक्षाएं पास कीं। इसके अलावा बाद में उन्होंने पंजाब विश्‍वविद्यालय से ही बीए की डिग्री भी हासिल की थी।

पहली किताब 19 साल की उम्र में छपी

विष्णु प्रभाकर जी की पहली कहानी मात्र 19 साल में छपी थी। 1931 में प्रकाशित हुई इस कहानी का शीर्षक “दीवाली की रात” था। उस समय ये कहानी लाहौर से निकलने वाले मिलाप समाचार पत्र में छपी।। और फिर उनकी रचनाओं के प्रकाशित होने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो 2007 तक बिना किसी रुकावट के यूं ही चलता रहा। जब उन्होंने अपनी आखिरी रचना लिखी उस समय प्रभाकर जी 76 वर्ष के हो चुके थे।

उनकी तारीफ में अकसर ये कहा जाता है कि कोई लेखक इतने बरसों तक, लगातार एक स्तरीय कैसे लिख सकता है। लेकिन प्रभाकर जी ने ये सिद्ध करके दिखाया। वो स्वयं इस बात की प्रत्यक्ष उदाहरण थे। उनके लेखन में विचार नारों की तरह शोरगुल में नहीं बदलते बल्कि स्थिर रहते हैं। उनके विचारों की आवाज तो कानों में सुनाई देती है, परंतु चुभती नहीं है। उनकी कथावस्तु में प्रेम, मानवीय संवेदना, पारिवारिक संबंध और अंधविश्वास जैसे विषय हमेशा मौजूद रहे।

हर शैली और माध्यम के लिए लिखा

विष्णु प्रभाकर ऐसे लेखक थे, जिन्होंने हर शैली में लिखा। फिर चाहें वो कहानी हो, कविता, नाटक यात्रा, बाल साहित्य या फिर जीवनी। सभी पर विष्णु प्रभाकर जी ने काफी कुछ लिखा। इतना ही नहीं विष्णु प्रभाकर न सिर्फ साहित्य के लिए लिखा करते थे, बल्कि रेडियो और टेलिविजन के लिए भी उन्होंने अपनी दमदार कलम चलाई।

ऐसे रखा रेडियो और टेलिविजन की दुनिया में कदम

डीडी नेशनल के हवाले से बंटवारे के बाद रेडियो का बहुत सारा स्टाफ पाकिस्तान चला गया। जिसके बाद तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री बी. वी केसकर ने सभी हिंदी बड़े लेखकों को बुलाया और रेडियो के लिए नियुक्त कर दिया। इसके बाद जब टेलविडियो का प्रचलन भारत में आया तो, रेडियो के साथ विष्णु जी ने अपने कई नाटकों को चलचित्र के अनुसार दोबारा लिखा। दूरदर्शन के सीरियलों और उनके संवादों को लिखने में विष्णु जी का बड़ा सहयोग रहा है। इनमे सबसे प्रमुख नवप्रभात और लिपस्टिक की मुस्कान रहे।

सुचेता कृपलानी का लिया इंटरव्यू

रेडियो और टेलीविजन के लिए काम करते हुए विष्णु जी ने कई महान हस्तियों के इंटरव्यू लिए थे। इन हस्तियों में सुचेता कृपलानी का भी नाम शामिल है। डीडी नेशनल के एक इंटरव्यू के दौरान विष्णु जी अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि-सुचिता कृपलानी से इंटरव्यू की बात हम पहले ही कर चुके थे। सुचिता कृपलानी इंटरव्यू के लिए स्टूडियो में पहुंची, तब किसी ने उनसे कहा कि आप इंटरव्यू से पहले पाउडर लगा लीजिए। इस बार सुचेता जी भड़क गईं और बोली मैं वैश्या हूं क्या? जो मेकअप करूं। तब वो व्यक्ति मेरे पास आए और कहा कि देखिए इन्हें समझाइए ज़रा। मैं सुचेता कृपलानी के पास गया और कहा, देखिए सुचेता जी आपको मेरे चेहरे पर कुछ नज़र आ रहा है। उन्होंने कहा नहीं। मैं पाउडर लगा चुका हूं। फिर उसके बाद हमने वो इंटरव्यू किया।

उस समय हम लोगों में देश के नव निर्माण की भावना थी

विष्णु जी ने डीडी न्यूज पर इंटरव्यू के दौरान कहा था कि पहले हम लोग अपने लिए काम नहीं करते थे। उस समय हम सभी लोगों में नवनिर्माण की भावना थी। और हम सब लेखक, कलाकार, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर मिलकर काम किया करते थे। अगर एक दो बार को छोड़ दें, तो हमें कभी ऊपर से आदेश नहीं मिला। रेडियो और दूरदर्शन के दफ्तर में एक घर जैसा माहौल होता था।

विष्णु जी आगे कहते हैं कि उस समय मशीनों और यंत्रों से काम नहीं होता था। नाटकों के लेखन की नकल हाथों से की जाती थी। आज मनुष्य कम और यंत्र ज्यादा काम कर रहा है। उस समय रेडियो मनुष्य हुआ करता था। आज रेडियो एक मशीन है।

आवारा मसीहा ने दिया सबसे ऊंचा कद

आवारा मसीहा शरतचंद्र की जीवनी है। आवारा मसीहा विष्णु प्रभाकर की सभी रचनाओं से कई मायनों में अलग है। इसे कोई भी मामूली रचना नहीं कह सकता। दरअसल, शरतचंद्र एक मनमौजी और हर नियम को तोड़ने वाले व्यक्ति थे, वहीं विष्णु जी इसके विपरित गांधीवादी विचारों और नियमों में बंध कर जीवन जीते थे। इस जीवनी के लिए विष्णु जी को कई सम्मान भी प्राप्त हुए। आवारा मसीहा विष्णु जी की सबसे चर्चित रचना है।

14 सालों तक संसाधनों के अभाव में की रिसर्च

विष्णु जी ने आवारा मसीहा की रिसर्च के लिए अपने जीवन के पूरे चौदह साल खपा दिए। यही नहीं शरतचंद्र की जीवनी के लिए न सिर्फ उन्होंने देश बल्कि विदेश में जाकर भी रिसर्च की। म्यांमार से लेकर भागलपुर और बंगाल, उनकी जीवनी से जुड़ी हर सूचना, हर किरदार की खोज में कम संसाधनों में भी लगातार रिसर्च करने के लिए यहां से वहां भटकते रहे। दरअसल, उस समय देश-विदेश में आना जाना बहुत महंगा हुआ करता था। इसके बावजूद भी उनका अपने कार्य के प्रति लगाव और सच्ची निष्ठा वाकई सरहनीय है।

अगर मैं शरतचंद्र पर नहीं लिखता तो ये उनके साथ अन्याय होता: विष्णु प्रभाकर

जब विष्णु प्रभाकर जिनसे किसी ने पूछा कि एक लेखक होकर भी आप अपनी स्वतंत्र कृति रचने के बजाय, आपने अपने जीवन के अनमोल 14 वर्ष किसी ऐसी कृति में क्यों खर्च कर दिए, जो ठीक तरह से आपकी होनेवाली भी नहीं थी। इस बात पर विष्णु प्रभाकर जी हंस पड़े और बोले, वह सिर्फ विष्णु जी के लिए ही नहीं बल्कि हर लेखक और पाठक के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे तीन लेखक हुए जिन्हें जनता ने दिलो जान से प्यार किया है। तुलसीदास, प्रेमचंद और शरतचंद्र। अमृत लाल नागर ने ‘मानस का हंस’ लिखी और तुलसी की छवि को निखार दिया। अमृत राय ने कलम का सिपाही लिखकर, प्रेमचंद को हम सबके नजदीक बना दिया। पर शरत के साथ तो कोई न्याय न हुआ। अब तक उनके ऊपर लिखनेवाला कोई न हुआ, न कुल-परिवार में और न ही कोई साहित्यप्रेमी। यह बात मुझे 24 घंटे बेचैन किए रहती थी इसीलिए मुझे लगा कि मुझे ही यह काम करना होगा।

आवारा मसीहा के लिए मिले ये पुरस्कार’

आवारा मासिक के लिखने के लिए विष्णु प्रभाकर को ‘पाब्लो नेरूदा सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ सहित अनेक देशी-विदेशी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इसके आलावा भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ दिया गया साथ ही हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा शलाका सम्मान, यूपी हिंदी संस्थान से गांधी पुरस्कार, राजभाषा विभाग के जरिए बिहार के डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान’ से भी सम्मानित से भी नवाजा गया। यही नहीं इस देश के हर नागरिक के लिए सबसे बड़े सम्मानों में से एक पद्म विभूषण से भी विष्णु जी को सम्मानित किया गया।