यूपी में 100 सीटों पर लड़ेंगें ओवैसी,क्या फिर बनेगी भाजपा सरकार?

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असदुद्दीन ओवैसी ने कल ट्वीट करके ऐलान कर दिया है की उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी,और उन्होंने ये भी ऐलान कर दिया है कि सुहेलदेव पार्टी के गठबंधन के साथ मिल कर वो चुनाव लड़ेंगें,ओवैसी के ट्वीट के बाद ये सवाल उठने लगे हैं कि उनके चुनाव लड़ने से स्थितियां क्या होंगी? आइये गौर करते हैं।

मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर नज़र

असल मे ओवैसी जिस तरह की राजनीति करते हैं वो सीधे तौर पर मुसलमानों को सत्ता में भागीदारी की बात करती है,और इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए ही वो अपने राजनीतिक कार्यक्रम करते हैं,यूपी में भी शायद ओवैसी का प्लान ठीक वैसा ही है जैसा बिहार में था।

बिहार के सीमांचल ही की तरह उत्तर प्रदेश का पश्चिम उत्तर प्रदेश का इलाका मुस्लिम बाहुल्य इलाका है,यहां क़रीबन 26 फीसदी मुस्लिम आबादी है,ये आबादी गाज़ियाबाद, बुलन्दशहर, अलीगंज ,मेरठ,बागपत,कैराना, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनोर,अमरोहा और सम्भल से लेकर नगीना और मुरादाबाद जैसे कई ज़िलों की 100 विधानसभा सीटें शामिल हैं

ओवैसी अपनी असल बिसात यहां बिछाना चाहते हैं,हालांकि ये पहली बार नही है 2017 के चुनावों में भी ओवैसी संभल विधानसभा से उम्मीदवार उतार चुके हैं,उन्होंने यहां पूर्व सांसद के पोते को टिकट दिया था,जो दूसरे नम्बर पर रहे थे।

पूर्वांचल में राजभर के साथ मिलकर दांवपेंच

इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी के प्लान पूर्वांचल की कई सीटों पर भी हैं जिसमें गाज़ीपुर,इलाहाबाद,बनारस ,आजमगढ़,चंदौली बहराइच और घोसी जैसे और कई क्षेत्रों पर खेल बदलना चाहते हैं, यहां पर ही वो मुख्य तौर पर ओमप्रकाश राजभर के साथ गठबंधन करते हुए असली राजनीति करना चाहते हैं।

वो राजभर और मुस्लिम वोट को साथ लाना चाहते हैं,और अगर ऐसा ज़मीनी स्तर पर भी होता है तो ओवैसी बिहार की तरह फिर से एक बार सबको चौंका सकते हैं।

दरअसल पूर्वाचल की दो दर्जन लोकसभा सीटों पर राजभर समाज का वोट 50 हजार से ढाई लाख तक हैं जिसमें घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया से लेकर आजमगढ़ और लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही जैसे जिलों में राजभर समाज का वोट काफी अहम साबित होता है।

क्या बिहार की तरह भाजपा को फायदा पहुंचाएंगे?

ओवैसी पर ये आरोप अक्सर लगता है कि वो भाजपा को फायदा पहुंचाते हैं,और ऐसा कई बार होता भी है कि ओवैसी के उम्मीदवार लड़ने से भाजपा जीत भी जाती है लेकिन क्या ये सच है कि उनके लड़ने या न लड़ने से चुनाव हारा या जीता है?

बीते साल हुए बिहार विधानसभा चुनावों में असदुद्दीन ओवैसी बिहार में 20 सीटों पर चुनाव लड़ें थे,जिसमें से उन्होंने 5 सीट हासिल की थी और 8 सीटों पर वो दूसरे नम्बर पर रहे थे,अब सवाल ये उठता है कि 20 सीट लड़कर,5 सीट जीत कर और 8 पर दूसरे नम्बर पर रह कर कोई कैसे “वोटकटवा” हो सकता है?

लेकिन हां ये भी सच है कि अगर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मज़बूती से प्रदेश में चुनाव लड़ती है तो फायदा भाजपा को होगा,
लेकिन सिर्फ भाजपा को होगा, ये सच नही है,ओवैसी भी परिणामों के बाद सबको चौंका सकते हैं और बसपा और सपा जैसे दलों के सामने ये चुनौती पेश कर सकते हैं कि मुस्लिम वोट बैंक के पास प्रदेश में और भी ऑप्शन है।

बहरहाल ओवैसी ने ऐलान किया है कि वो चुनाव लड़ेंगे यानी ये चुनाव रोमांचक होने जा रहा है,किसे फायदा होगा किसे नुक़सान, ये परिणाम बताएंगे, अभी सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने का हक़ होता है, तो सब चुनाव लड़ रहे हैं।