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गैजेट्स के ‘काले आईनों’ में दिखता हमारा भविष्य

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नेटफ्लिक्स की एक प्रसिद्ध वेब सीरीज ‘ब्लैक मिरर’ में टेक्नोलॉजी का भविष्य और उसके दुष्परिणामों को दिखाया गया है। उसमें एक से बढ़कर एक रोचक एपिसोड हैं लेकिन, मुझे सबसे बेहतरीन लगा- ‘मेन अगेंस्ट द फायर’। इस एपिसोड में फौजियों में एक एप्लीकेशन इंस्टॉल की जाती है- ‘मास नामक’। मास का मक़सद एक नस्ल विशेष के लोगों को 100% नष्ट करना है। मास के इंस्टॉल होते ही उनके दिमाग सम्मोहित हो जाते हैं और उन्हें उस नस्ल के लोग जिन्हें रोशेट कहा गया है वीभत्स दिखने लगते हैं और उनकी आवाज़ें बहुत ही बुरी सुनाई पड़ती हैं। संक्षेप में वे उन्हें दानव जैसे दिखते हैं।

क्लाइमेक्स में यह हकीकत जान लेने वाले एक सिपाही से ऐप इंस्टॉल करने वाला विशेषज्ञ कहता है कि प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में 100 में से केवल 15% से 20% सैनिक ही अपनी बंदूक का ट्रिगर दबा पाते थे। कई सैनिकों को ट्रिगर दबाने के लिए उनका ब्रिगेडियर बेत तक मारता था। वियतनाम युद्ध में यह प्रतिशत बढ़कर 70 से 80 हुआ लेकिन युद्ध से लौटे हुए सैनिक इसके कारण तनाव में आए और उनमें से 30 से 35% ड्रग्स के आदि हो गए थे। लेकिन मास ने यह सब बदल दिया। सैनिकों के सारे सेंस बदल दिए। टॉरगेट उन्हें विभत्स दिखाई देते हैं, उनकी चीखें उन्हें सुनाई नहीं देती, उन्हें मारकर उन्हें पछतावा नहीं बल्कि गर्व महसूस होता है। उनके सपनों में भी वे चीखें और लाशें नहीं दिखती जो अमूमन सैनिकों को दिखती हैं उसकी जगह उन्हें सपने भी नियंत्रित दिखाए जाते हैं। मतलब युद्ध के लिए बिल्कुल परफेक्ट नियंत्रण मस्तिष्कों पर।”मनुष्य के मन में करुणा ईश्वर द्वारा प्रदत्त या ईश्वर द्वारा इनस्टॉल एक ऐप है। यह करुणा सैनिकों में भी होती है जिसके कारण वे अंजान लोगों को मारने से बचते हैं, खासकर आम लोग और उनमें भी खासकर मासूम दिखने वाले लोग जैसे बच्चे, बूढ़े और महिलाएं। यह करुणा मनुष्य को मनुष्य से जोड़ती है, यहां तक कि मनुष्य को अन्य जीवो से भी जोड़ देती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह संगठित होना चाहता है। उनको संगठित रहने के लिए हमेशा शत्रुओं की आवश्यकता होती है क्योंकि, शत्रु के बिना एक रहना या संगठित रहना संभव नहीं है।

‘हम बनाम वे’ का फॉर्मूला मनुष्यों को सबसे अधिक संगठित करता है। मनुष्य अपने दुश्मनों का सफाया कर देना चाहता है और ऐसा करने से जिनको लाभ होगा वह हमेशा यह चाहेंगे कि उनके संगठन वाले या उनकी तरफ वाले दूसरों के प्रति बेहद नफरत रखें। उसे मिलना-जुलना तो दूर उन्हें जीवित देखना भी पसंद ना करें। यह सब ब्रेन हैकिंग करने की कोशिशें आदिम काल से चली आ रही हैं। अलग अलग सिद्धान्तों, विचारों और कहानियों के द्वारा। लेकिन, ब्लैक मिरर की स्टोरी को सही माने तो अब लोगों की ब्रेन हैकिंग टेक्नोलॉजी करेगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब हमारे ब्रेन को नियंत्रित करेंगी और एक रोबोट की तरह हम टारगेट को निस्ते नाबूद कर देंगे, बिना उस पर रहम खाए, बिना किसी पश्चाताप के, स्वप्न में भी कोई पछतावा नहीं।

~डॉ अबरार मुल्तानी, लेखक- मन के रहस्य