इस दौर के नेताओं को Ghulam Nabi Azad से संसदीय बर्ताव सीखना चाहिए

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समय हर एक सत्ताधीश को मौका देता है गुलाम नबी आज़ाद बनने का,कोई बन जाता है और कोई चूक जाता है । आज जब ग़ुलाम नबी आज़ाद के अपनेपन पर आँसू आँख मे आए होंगे, तो सामने भले ही गुलाम नबी होंगे मगर ज़हन में कहीं एहसान जाफरी भी होंगे,की काश उस वक़्त दिल बड़ा किया होता । काश अपने विपक्ष को अपना दुश्मन न समझा होता । काश उनके भी काम कर दिए होते जो हमारे विचार से अलहदा थे । काश अपने विचार से अलग विचारों की भी ज़िन्दगी बचाने वाली फेहरिस्त में कोई मेरे नाम पर भी रोता ।

अक्सर हम सब उन लोगों की भत्सर्ना करते हैं, जिन्होंने अपने विरोधियों को प्यासे होने पर पानी पूछ लिया होता है ।हमारे अन्दर का लोकतंत्र इतना मर चुका है कि हमे यक़ीन ही नही होता कि अपने से विरुद्ध विचार को भी सख्त धूप में छतरी दी जा सकती है । तभी तो हम गुलाम नबी आजाद जैसे व्यक्तित्व की आलोचना करते हैं । उत्तर प्रदेश में यदि कोई इस परम्परा ध्वज्वाहक है, तो वह मुलायम सिंह यादव हैं, जिन्होंने अपने विपक्ष को कभी दुश्मन नही माना, उनके मुश्किल दिनों में उनका पानी नही बन्द किया,यही तो डेमोक्रेसी है ।

जिन्हें लगता है कि सत्ता में आपको निर्मम होना चाहिए,जिन्हें लगता है गुलाम नबी आज़ाद का विपक्षियों की सुनना गलत था,उनके काम करना बुरा था,तो उन्हें वर्तमान सत्ता को अपना आइडियल मान लेना चाहिए । वर्तमान सत्ताधीश को अपना नेता मान लेना चाहिए,क्योंकि जो वह ख्याल रखते हैं, वह यह पूरा कर रहे हैं ।

दुनिया के लिए सबसे मुफ़ीद शख्सियत हमेशा वह रहेगी,जो सुलह कराएगी । गुलाम नबी आज़ाद के अंदर जो यह खूबी थी,वह उनसे ज़्यादा उनकी पार्टी की खूबी थी । जो आज़ाद भारत में नेहरू से लेकर सोनिया गांधी तक आती है, अभी आगे भी जाएगी,वह यह कि आपका विरोधी विचार, आपका व्यक्तिगत दुश्मन नही है । यही खूबी तो अब कमज़ोर पड़ रही है । देश को लोकतंत्र की तमीज़ समझाने वाली कॉंग्रेस को अपने लीडर गुलाम नबी आज़ाद पर फ़ख़्र करना चाहिए,फ़ख़्र इसलिए कि अपने पूरे राजनैतिक सफ़र में उन्होंने कॉंग्रेस के मूल्यों और धर्मनिरपेक्षता लोकतांत्रिक नियमों को भरपूर जीकर दिखाया है । उसे तो कहना चाहिए कि देश के सभी सांसदों,सभी राजनीतिज्ञों को हमारे नेताओं से सीखना चाहिए कि संसदीय बर्ताव क्या होता है । सबसे कहना चाहिए कि जब भी आपको गुलामनबी आज़ाद बनने का मौका मिले, तो चूकना मत,अपने विरोधियों को भूलना मत,उनकी भी मदद करना जब मुश्किल में घिरे हों,क्योंकि वह राजनीति में भले विरोधी हों,विचारधारा में भले ही ठीक उल्टे हों,मगर हैं तो मेरे देशवासी,बस इस लाइन को पकड़ कर मदद कर जाना ।

हम गुलाम नबी आज़ाद की राजनीति,कॉंग्रेस के सफ़र और तमाम मुद्दों के इर्द गिर्द उनके स्टैंड की आलोचना कर सकते हैं, करनी भी चाहिए,मगर इस बात से हमें पूरा यकीन है कि वह व्यक्ति,सँविधान,लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर सौ फीसद खड़ा व्यक्ति है । अपनी मेहनत से पूरे देश मे अपने दोस्त गढ़ने वाला व्यक्ति है । उनके संसदीय कार्यकाल के पूरे होने पर आँसू बहाने से भी अच्छा है कि उनके जैसा बनने की प्रतिज्ञा करें,अपने नए सांसदों को सिखाएं की ऐसे काम करो कि तुम्हारे ठीक दूसरी तरफ खड़ा व्यक्ति भी रोए,यह पाया नही जाता है, कमाया जाता है, जो गुलाम नबी आज़ाद ने कमाया है । हमारी संसद का बेहतरीन हिस्सा रहे वह,उनकी अच्छाइयों को सीखने और सिखाने का वक़्त है,कुछ ग़लतियों से खुद को दूर रखने का भी यही वक़्त है । कॉंग्रेस ने गुलाम नबी को भरपूर दिया और गुलाम नबी ने कॉंग्रेस को भरपूर दिया,यही सम्बन्ध एक पार्टी और कार्यकर्ता में हमेशा होना चाहिए ।

आज जो इनकीं तारीफ़ में क़सीदे पढ़ रहे,वह इनके जैसे बने और जो इनका विरोध कर रहे,वह भी खुद को सुधारें,क्योंकि अतिवाद बेहतर रास्ता नही है।