NDA के लिए बिहार में 2014 का परिणाम दोहरा पाना आसान नहीं होगा

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लोकसभा आम चुनाव में अभी 6 महीने का समय है, और मैं आज बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा करूंगा बिहार राजनीति काफ़ी गर्म है बयानबाज़ी अपने ज़ोर पर है सारी पार्टियां अपने आप को मज़बूत में दिखाने में लगी हुई है इन सब के बीच लगभग सारी पार्टियां तैयारी में लग चुकी है. अब तक के समीकरण से इतना तो तय हो चुका है की 2019 का चुनाव NDA और UPA के ही बिच होगा जबकि RJD से अलग हुए पप्पू यादव जी ने अपनी पार्टी बनाई JAPL विधानसभा चुनाव भी लड़ा और लगातार जनता के मुद्दों को लेकर सड़क से लेकर संसद तक मज़बूती से उठाते नज़र आते हैं लेकिन अपनी तरफ़ वोट ट्रांसफर करवा पाना पप्पू यादव के लिए आसान नहीं है ‌. अब कौन कितना कामयाब होता है ये जनता की अदालत में तय होगा.
मैं पिछले लोकसभा आम चुनाव के नतीजों पर नज़र डाल रहा हूं पिछले लोकसभा चुनाव में BJP+ मतलब NDA को बहुत बड़ी कामयाबी मिली थी और 40 में 31 सीटों पर जीत मिली थी जिसमें BJP- 22, LJP- 6 और RLSP- 3 जबकि समूचे विपक्ष को 9 सीटों पर संतोष करना पड़ा जिसमें UPA को 7 सीट जिसमें RJD-4, Congress-2 और NCP-1 सीट प्राप्त हुआ और जदयू CPI के साथ चुनाव लड़ी जदयू की राज्य में सरकार होने के बावजूद सिर्फ़ 2 सीटें ही मिल पाई और अधिकांश सीटों पर जदयू के प्रत्याशी को तीसरे पायदान पर रहना पड़ा और 2014 आम चुनाव की लड़ाई भी NDA और UPA के बिच रहा तीसरे मोर्चे को जनता ने नकार दिया. बिहार 2014 आम चुनाव में वोट प्रतिशत इस प्रकार था NDA- 38.80% (BJP-29.40%, LJP- 6.40%, RLSP- 3%) UPA- 30.70% (RJD- 20.10%, Congress- 8.40%, NCP- 1.20%) और JDU- 15.80%.
फिर 2015 का विधानसभा चुनाव हुआ और RJD+JDU+Congress को मिलाकर महागठबंधन बना और नितीश कुमार जी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर महागठबंधन चुनाव लड़ा और लालू प्रसाद यादव और नितीश कुमार की जोड़ी दो तिहाई से अधिक बहुमत के साथ बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाने में सफ़ल हुए लेकिन ये सरकार 20 महीने तक ही चली और नितीश कुमार ने 24 घंटे में पाला बदलते हुए NDA से मिलकर सरकार जी बना लिया और विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी RJD को विपक्ष में बैठना पड़ा जिसको लेकर तेजस्वी यादव ने जमकर नितिश कुमार पर हमला बोला और अभी भी हर मुद्दों पर बहुत हमलावर दिखाई देते हैं और इस प्रकार तेजस्वी यादव जी ने एक मज़बूत विपक्ष होने का परिचय दिया है और जनता में अपनी पहचान बनाने में सफ़ल हुए हैं. बिहार के युवाओं में तेजस्वी यादव एक क्रेज़ बन चुके हैं। और एक बात भी साफ़ है की नितीश कुमार जी ने तेजस्वी यादव को विपक्ष में बैठाकर उनको नेता बना दिया उपमुख्यमंत्री रहते हुए जितना लोकप्रिय नहीं थे जितना लोकप्रिय अभी हो चुके हैं. जबकि नितिश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री तो ज़रूर बन गए लेकिन बार बार गठबंधन तोड़ने को लेकर जनता में नितीश कुमार का विश्वास लगातार गिरा है और नितीश कुमार जी की सरकार में हुए बालिका आवास गृह में रेप और लगातार एक के बाद एक घोटाले के आरोप होने से नितिश कुमार के विकास पुरुष वाली छवि में दाग़ तो ज़रूर दिखाई दे रहे हैं.
अब बात करते हैं हम आने वाले आम चुनाव 2019 के सम्भावना पर जिसमें समीकरण बिल्कुल बदल चुका है 2014 के तूलना में 2019 का समिकरण अलग है, जो JDU 2014 के चुनाव में अकेले मैदान में थी अब वह NDA का हिस्सा है BJP के पास 2014 में नरेंद्र मोदी जी का जादू था, लेकिन मोदी जी के उस जादू में अब 2014 वाली बात नहीं है क्योंकि उनके द्वारा किया गया वादा 1-मंहगाई, 2- विदेशों से काला धन वापस लाने की बात हो या फिर 3 – हर भारतवासी के बैंक अकाउंट में 15-15 लाख रूपया देने की बात हो और 4 – हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने की बात, सब के सब चुनावी जुमला साबित हुआ.
नितिश कुमार के साथ एक सबसे बड़ी चुनौती है लगातार खिसकते जनाधार को बरकरार रखना अब शायद उनके बस की बात नहीं है, इन सबके पिछे सबसे बड़ी वजह है बिहार की राजनीति पुरी तरह से समाजिक आधार पर बंटी हुई है नितिश कुमार के जो पिछड़ा, अती पिछड़ा और दलित मतदाता थे वह अब नितिश कुमार जी से लगभग हट चुके हैं अल्पसंख्यकों का जो भी समर्थन था 2014-2015 तक वह पूरी तरह से खिसक चुका है.
स्वर्ण मतदाता बुनियादी तौर पर BJP के मतदाता हैं, और कुछ स्वर्ण मतदाता कांग्रेस के साथ हैं और अगर कुछ स्वर्ण मतदाता नितिश कुमार को समर्थन करते हैं तो उसमें कोई नितिश कुमार जी का जादू नहीं है। NDA में नितीश कुमार जी ज़रूर हैं लेकिन वहां पर उनकी स्थिति पहले जैसी नहीं रही है अब, नितीश कुमार जी के बुनियादी मतदाता कोयरी और कुर्मी हैं उसमें भी सेंधमारी करने का काम लगातार उपेन्द्र कुशवाहा जी की पार्टी RLSP कर रही है.
RJD गठबंधन या महागठबंधन कहिए इनके के लिए उम्मीद दिखाई दे रही इसलिए की जो मतदाता कल तक नितिश कुमार जी के साथ थे (पिछड़ा, अती पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों का कुछ हिस्सा) वह पूरी तरह से RJD के साथ आ गया है । और लालू प्रसाद यादव जी को सज़ा होने के वजह से यादव समुदाय में BJP के प्रति गुस्सा है और उस वजह से यादव मतदाताओं में सेंधमारी कर पाना BJP के लिए आसान नहीं होगा मुसलमान मतदाता पहले से लालू प्रसाद यादव जी के साथ पूरी तरह खड़ा है, सारे राजनीतिक समीकरण को देखते हुए इतना तो स्पष्ट हो चुका है की NDA के लिए बिहार में 2014 का परिणाम दोहरा पाना आसान नहीं होगा.

ज़ैन शाहब उस्मानी