नज़रिया – क्या कहती है मध्यप्रदेश की आदिवासी राजनीती?

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जिस राज्य की 24 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की हो, वहाँ पर उनका प्रतिनिधित्व नगण्य हो, सुनकर अजीब लगता है. पर मध्यप्रदेश की कहानी ऐसी ही है. पिछले कई सालों से यहाँ आदिवासी समुदाय की राजनीतिक उपस्थिति नगण्य रही है.
गोंड,प्रधान,भील और अन्य आदिवासी समुदायों की भारी तादाद प्रदेश में निवास करती है. महाकौशल, मालवा,निमाड़ घनी आदिवासी आबादी वाले क्षेत्र हैं. पर कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया और भाजपा से फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा कोई बड़ा नाम सुनाई नहीं देता.दोनों ही नाम अब आदिवासी राजनीति के बीते हुए नाम हो चुके हैं.-
प्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी महाकौशल क्षेत्र में तो जय आदिवासी युवा संगठन (जायस) मालवा निमाड़ में अपनी मज़बूत पकड़ रखता है. वहीं छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेता हीरा सिंह मरकाम महाकौशल क्षेत्र के आदिवासियों में काफी लोकप्रीय हैं.
2003 के लोकसभा चुनावों में गोंडवाना ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी, उसके बाद 2008 और 2013 में मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराई थी. इस बार गोंडवाना पहले के मुकाबले ज़्यादा मज़बूत स्थिति में नज़र आ रही है. आदिवासी युवाओं का बड़ा वर्ग गोंडवाना और जयस के साथ है.
जयस के अध्यक्ष डॉ हीरा अलावा एक MBBS डॉक्टर हैं, झाबुआ ज़िले के कुछी के रहने वाले हीरालाल अलावा का संगठन जयस उस समय चर्चा में आया जब इस संगठन ने मालवा निमाड़ क्षेत्र के कॉलेजों में हुए छात्र संगठन चुनावों में भारी जीत हासिल की. जयस की इस जीत के बाद मालवा निमांड और भोपाल अंचल के आदिवासियों में इस संगठन की पैठ बढ़ी और आदिवासी युवा इनसे जुड़ने लगा.
फ़िलहाल मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब है, जिसमें जयस आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग के साथ मैदान में है, तो वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी सम्मानजनक सीटें मिलने पर कांग्रेस से गठबंधन के लिए तैयार नज़र आ रही है.
आदिवासी युवाओं से बात करने पर वो कहते हैं, कि गठबंधन कांग्रेस और गोंडवाना दोनों के लिए बेहतर है, पर कांग्रेस को चाहिए कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को सम्मानजनक सीटें दे. यदि सम्मानजनक सीटें नहीं दी जाती हैं. तो बिना गठबंधन के ही 2- 4 विधायक गोंडवाना जिता लेगी.
पिछले कुछ सालों में भाजपा भी आदिवासियों में अपनी पैठ बना पाने में कामयाब हुई है. यही वजह रही है, कि पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा ने अपना परचम मज़बूती के साथ लहराया था.
वहीं कांग्रेस के आदिवासी कार्यकर्ता खुलकर गोंडवाना की उपस्थिति को नकारते नहीं हैं. उनका जोर इस बात पर है कि गोंडवाना से तो गठबंधन होगा. उनके हाव भाव बताते हैं, कि वो गोंडवाना से गठबंधन होने के सबसे ज़्यादा ख्वाहिशमंद हैं.
इस बार मध्यप्रदेश का चुनाव अहम है, सत्ता विरोधी लहर का शिकार मध्यप्रदेश मोदी और शाह की जोड़ी के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. तो वहीं कांग्रेस मध्यप्रदेश में अपने लिए 2019 के लिए संजीवनी तलाश रही है. ऐसे में मध्यप्रदेश के इन चुनावों में आदिवासी वोटर्स के प्रभाव वाली ये सीटें गेम चेंजर साबित हो सकती हैं.