क्या सॉफ्ट हिंदुत्व के चक्कर में मौलाना आज़ाद को भूल गए "राहुल गांधी" ?

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मौलाना आज़ाद की जयंती पर मात्र तीन लोगों द्वारा सेंट्रल हाल में पहुँच कर उन्हें श्रद्धांजलि देना और मोदी सरकार के बड़े चेहरे एवं पूरी कांग्रेस की लीडरशिप का ग़ायब रहना वाक़ई शर्मनाक है। अफ़सोस तो ये है कि राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस पार्टी तक ने ट्वीट करके बधाई तक नही दी। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने ख़ुद इस बात पर बेहद अफ़सोस जताया।
मुख्यधारा की मीडिया से लेकर वैकल्पिक मीडिया तक में किसी ने मौलाना आज़ाद का नाम तक नहीं लिया, क्या राइट क्या लेफ़्ट और क्या सेक्युलर क्या कम्यूनल, सबके सब एक साथ चुप रहे।
एक राष्ट्रीय नेता जिसने इस मुल्क के लिए सबसे अधिक त्याग दिया उसे इस समाज और इस समकालीन सियासत ने सिर्फ़ मुसलमानों का नेता बना दिया। अच्छा सफ़र तय कर रहा है ये देश… बधाई हो सभी को।
पत्रकारिता के इतिहास में मौलाना आज़ाद से बड़ा पत्रकार इस देश में कोई नहीं हुआ जिन्होंने अपनी कलम के ज़रिये एक आंदोलन खड़ा कर दिया, जेल में भी रहकर जो अपनी कलम के ज़रिए उपनिवेशी ताक़तों पर लगातार हमला करते रहे। जिनको पढ़कर लोग स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में कूद पड़ते थे।
पर क्या आपने देखा किसी भी बड़े पत्रकार ने उनके जन्मदिन पर उन्हें खिराज-ए-अकीदत पेश किया है? राष्ट्र के लिये उनकी क़ुर्बानियों का ज़िक्र किया हो? आप लोग सुधीर चौधरी को गरिया के ख़ुश हो लीजिए, पर उन लोगों से सवाल कौन खड़ा करेगा जो ख़ुद को निष्पक्ष एवं बड़का क्रांतिकारी बनते हैं? क्या मौलाना आज़ाद प्राइम टाइम लायक नहीं थे?
ये जो सूटेड-बूटेड लिबरल बने घूमते हैं, मोदी सरकार का विरोध करके अपनी पैठ बनाए हुये हैं। उनके अंदर भी इस्लामोफोबिया सबसे अधिक भरा रहता है। यही पक्ष हैं और यही विपक्ष… तुम कौन?