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नज़रिया – क्या अटल जी सबके नेता थे ?

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अटल जी, आप राजनीती के “अटल” है,आप बेहतरीन वक़्ता हुआ करते थे,आपने देश के “कारगिल” विजय कराया,आपने बिना “कांग्रेस” वाली सरकार पांच साल चलाकर दिखाई,बहुत बड़ी हिम्मत चाहिए होती है इसमें और आपने वो करके दिखाया,लेकिन क्या आप “सब” के नेता थे?
अब जब आप राजनीती से दूर है,तो सवाल तो उठता ही है कि क्या अटल जी देश के असल नेता थे? इसपर कुछ सवालात है, अटल जी वही नेता है जो अपनी धुर विरोधी नेता इंदिरा जी को भी जंग जीतने पर “दुर्गा” की उपाधी देकर अपनी बुद्धिमत्ता दिखा सकते है. अटल वही नेता थे,जो सरकार गिरने से कुछ देर पहले “देश रहना चाहिए” वाला और बेहतरीन बयान दे रहे थे, लेकिन क्या आप “सब” के नेता थे?ये सवाल बहुत अहम है।
शायद हो शायद न हो, लेकिन अटल जी वही अटल है जो बाबरी विध्वंस से एक रात पहले उस ज़मीन को “समतल” करने की बात कर रहे थे,आप उसी हुजूम को संबोधित कर रहे थे जिसने ही शायद बाबरी मस्जिद ढहाई हो? पता नही वहां बाबरी मस्जिद थी या नही? राम मंदिर था या नही लेकिन आप वहां थे,आपने ‘राम’ के नाम पर लोगों से कहा था ज़मीन समतल करने के लिए,फिर भी आप 1999 में “सेक्युलर” बन गए.
चलिये इतनी बात तो देश भुला देता है ,देश तो इंदिरा का “आपातकाल” भुला दिया था,तो आप ने थोड़ी न देश का सिद्धांत,कानून और सेक्युलरिज़्म गिराने में साथ दिया था? जो देश को आपकों याद रखता,फिर आप “99” में प्रधानमंत्री बने,सेक्युलर बने और सरकार चलायी,और फिर “गुजरात” हुआ लेकिन आप बस बोलें,कुछ क्यों नही किया आपने?
आपने गुजरात के मुख्यमंत्री को “राजधर्म” निभाने को कहा,लेकिन कार्यवाही क्या करी?आपने क्या किया?लेकिन आप फिर भी सेक्युलर बने रहे,बस अब बात इतनी की आप बाबरी मस्जिद के गिर जाने के वक़्त भी थे,आप “गुजरात” के नरसंहार के वक़्त भी थे,क्या आपको भारत पर आपातकाल वाला ख़तरा इन दोनों में से एक वक़्त नही लगा? और नही लगा तो कैसे आप “सब” के नेता थे? आप एक पत्रकार थे आप तो समझ समझ ही सकते थे। लेकिन आपने ऐसा कुछ नही किया,ज़रा भी नही।
चलिये आपका जन्मदिन है,आपकी दीर्घायु हो,ये तो सिर्फ सवाल है जवाब आये न आये कोई नही ,लेकिन सवाल तो चलते रहेंगे क्योंकि आप ही ने तो कहा “ये देश रहना चाहिए देश का लोकतंत्र रहना चाहिए”,इसलिए देश के लोकतंत्र को ज़िंदा रखें है हम और सवाल पूछ रहे है हम की क्या आप “सब”,के नेता थे. बाकी आपके पास से जवाब नही आएगा ये भी पता है और आएं भी क्यों किसी को क्या ज़रूरत है जवाब की,पुरानी बात है बस पूछी थी क्योंकि ज़ख़्म है भर ही नही पाते है।