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जो आज साहिबे मसनद हैं, कल नहीं होंगे

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कुछ भी स्थायी नहीं है ! आज के युग के युवा ये चीज़ भूल चुके हैं और शायद यही गलती हर युग में लोग करते हैं और ये स्वाभिवक भी है क्योंकि कल किसने देखा सिवाय किताबों के,आज हैं तो हम हैं और हम हैं तो हम ही हैं. कभी दुनिया जीतने निकले सिकन्दर का साम्राज्य भी खत्म हुआ था और महान मौर्यों और गुप्तों का भी,इस्लाम का राज भी आधी दुनिया में था और फिर ईसाइयों का भी,लगभग सम्पूर्ण भारत जीत चुके मुगल असल में महान मुगल सल्तनत के आखिरी राजा को उस लाल किले में दफन भी नहीं होने दिया गया जहाँ से उसके पूर्वज सिर्फ ईशारों से दुनिया बदल देते थे,कभी आधी से ज़्यादा दुनिया में कॉलोनी बनाने वाला इंग्लैंड भी आर्थिक मार झेलेगा ये किसने सोचा था?
असल में सब बदलता है कभी 20 साल में कभी 100 साल में कभी 500 साल में,परिवर्तन ही नियम है, आज तुम ताक़तकवर हो कल हम होंगे परसो कोई और होगा औऱ ये ताक़त किसी पर रुकेगी नहीं क्योंकि वो बाध्य है परिवर्तन के नियमों से. आज जब बीजेपी अपने स्वर्णिम दिनों में है तो विपक्ष की कोई हैसियत नहीं है और ऐसा ही जब था जब ये विपक्ष सत्ता में था, किसे पता था 2 सांसदों वाली पार्टी हर चुनाव जीतेगी और किसे पता था कि जिस पार्टी का मतलब ही सरकार है वो भी हारेगी, ये चलता रहता है और चलना भी चाहिए क्योंकि इसका चलन बहुत पुराना है और इकलौता सत्य है.
अब अगर तुम्हें लगता है कि कल के दिन पूरा देश हिन्दू हो गया या मुसलमान हो गया तो लड़ाई नहीं होगी तो शायद तुम इतिहास में कच्चे हो,हम उस जीवन में है जहाँ क्लास में 1 2 3 रैंक लाने का भी कम्पटीशन होता है और घर में सबसे ज़्यादा खुराक किसकी है इस बात का भी ,तो ये कतई न सोचें कि धर्म की आड़ में आप बक्शे जाओगे दलित सवर्ण, शिया सुन्नी, कैथोलिक ऑर्थोडॉक्स प्रोटेस्टेंट ये सब लड़ते हैं और हम बेहतर के लिए लड़ते है जब मसले सुलझते हैं तो फिर मोहल्ले और फिर घरों में ये दौर चलता है तो इस थ्योरी से दूर रहिए,बाकि आपको लगता है कि इस अधुनितका के दौर में आप मुगल, मौर्य,सिकन्दर से अधिक ताक़तकवर हैं तो आप “मिलीमीटर” हैं वो ही गैंग्स ऑफ वासेपुर वाले.
जीवन जितना है जी लो बाकि जब समझ जाओगे की सब बदलना है और ये जो लड़ रहे हैं ये ही बदलेंगे तो चार्जिंग पॉइंट के पास लिहाफ में बैठकर ठंडे हाथो से चाय पीते हुए यही लिखोगे की “हमें घण्टा फर्क नहीं पड़ता”.
बिग बॉस चाहते हैं इसे पढ़कर भूल जाएं और फिर लक्ज़री बजट कार्य “आओ नफरत बाँटे” में पूर्ण जोश से लग जाएं.
गगनदीप सिंह