क्या प्रधानमंत्री मोदी को मिला कोटलर अवार्ड फ़र्ज़ी व आधारहीन है?

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अगर कोटलर पुरस्कार फ़र्ज़ी और आधारहीन है तो प्रधानमंत्री को उक्त पुरस्कार से किनारा कर लेना चाहिये और सरकार को चाहिये कि वह ऐसी संस्था के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करे। फिलिप कोटलर नामक यह पुरस्कार नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री पद पर रहते हुये दिया गया है, जिसके बारे में अब यह पता चल रहा है कि यह एक फ़र्ज़ी और अप्रमाणित नाम पते वाली संस्था द्वारा दिया गया अवार्ड है। यह प्रधानमंत्री के पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है। इससे देश की प्रतिष्ठा को हानि पहुंच सकती है, और जैसे सवाल लोग उठा रहे हैं, उससे इस पुरस्कार का  मज़ाक़ बन रहा है। यह पुरस्कार, इसे देनेवाली अलीगढ़ की संस्था और फिलिप कोटलर जिनके नाम पर यह इनाम है सबके सब संदेह के घेरे में हैं। ऐसे पुरस्कार सम्मान बढाते नहीं बल्कि सम्मान को हानि पहुंचाते हैं।
यह पुरस्कार एक वर्ल्ड मार्केटिंग समिट में दिया गया, जिसे स्पांसर किया था गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया,  पतंजलि और रिपब्लिक टीवी ने। यह संस्था मार्केटिंग के क्षेत्र में पुरस्कार देती है, लेकिन इस अवार्ड का नाम संस्था की साईट पर उपलब्ध नहीं है, न ही किसी ज्यूरी के नाम या ज्यूरी है भी या नहीं है, का उल्लेख नहीं है। सरकार ने जो इस संबंध में जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की उसमे भी पुरस्कार देने वाली संस्था का नाम कही नहीं है। यह अवार्ड जिसके नाम पर दिया गया उसने वर्ल्ड मार्केटिंग समिट नामक कंपनी 2011 में बनायी और भारत में अपना नाम तीन साल तक प्रयोग करने के लिए अलीगढ की एक छोटी सी अल्पज्ञात कंपनी सुसलेंस रिसर्च इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट प्राइवेट लिमिटेड से  अग्रीमेंट कर लिया। मार्केटिंग क्षेत्र में दिए जाने वाले इस अवार्ड के लिए आवेदन करने की फीस एक लाख रूपये थी और काफी अवार्ड्स उन्ही कंपनियों को मिले जो इसकी स्पॉन्सर थीं। उसी में एक इनाम हमारे प्रधानमंत्री जी नरेंद्र मोदी को भी मिला है।
आम तौर अंतराष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिये न तो कोई अर्थ शुल्क लगता है और न ही कोई धन दिया जाता है। निर्धारित क्षेत्रों में नामचीन व्यक्तियों के उत्कृष्ट कार्यों को देखकर उन्हें नामांकित किया जाता है। पुरस्कार हेतु चयन के अपने अपने मापदंड होते हैं। जिनकी परख ज्यूरी का एक पैनल करता है। ज्यूरी में अपने अपने क्षेत्रों के प्रतिष्ठित और नामचीन लोग रखे जाते हैं। ज्यूरी जिस आधार पर चयन करते हैं, वह सब सार्वजनिक किया जाता है। यह सारी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होती है। जब इस कम्पनी की पड़ताल अलीगढ़ में मौके पर जा कर इंडिया टुडे के पत्रकार ने की तो वहां कुछ भी नहीं मिला। कंपनी की वेबसाईट, फोन नम्बर आदि संपर्क सूत्र भी बन्द है और कम्पनी का पता भी फर्जी है। इस पुरस्कार के प्रायोजक इसे गोपनीय भी बता रहे हैं।
मैं पहले से ही कह रहा हूँ कि प्रधानमंत्री कार्यालय पीएमओ में कहीं न कहीं कोई गम्भीर व्याधि है। जो अक्सर ऐसे कदम समय पर नहीं उठा पाता है जिससे पीएम और नरेंद्र मोदी की अक्सर किरकिरी होती है। कभी उनके भाषणों में गलत इतिहास मिल जाता है तो कभी गलत तथ्य। आज का समय सूचना प्रद्योगिकी का है। अधिकतर की हथेली में पड़ा स्मार्टफोन दुनिया भर की सारी वांछित सूचनाएं पल भर में ला कर सामने रख देता है तो जो कुछ भी कहा जा रहा है उसकी असलियत सामने आ जाती है। यह पुरस्कार भी, जब इसके देने की घोषणा हुयी तो पीएमओ और खुफिया एजेंसियों को इसकी पड़ताल कर के प्रधानमंत्री जी को सच से रूबरू कर देना चाहिये था। कम से कम जो आज पुरस्कार की प्रमाणिकता पर विवाद उठ रहा है, वह तो नहीं उठता।

© विजय शंकर सिंह