मंदी नहीं बल्कि डिप्रेशन की चपेट में है भारत

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आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तीन पैकेज दिए जा चुके हैं, वित्तमंत्री कह रही है कि नए पैकेज को मिलाकर सरकार अब तक कुल तीस लाख करोड़ रुपये सिस्टम में डालने का इंतज़ाम कर चुकी है। क्या तीस लाख करोड़ कहीं भी आपको मार्केट में नजर आ रहा है ? पूर्व गवर्नर बिमल जालान कहते हैं कि महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए कोई नया प्रोत्साहन पैकेज देने की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय यह अधिक महत्वपूर्ण होगा कि सरकार पहले जिस पैकेज की घोषणा कर चुकी है, उसे खर्च किया जाए।

रिजर्व बैंक भी अर्थव्यवस्था में आयी मंदी को स्वीकार कर चुका है पर इसके लिए उसने एक नए शब्द का अविष्कार किया है वह है ‘टेक्निकल रिसेशन’ । RBI ने रिसेशन (मंदी) के साथ टेक्निकल शब्द जोड़ दिया है। रिज़र्व बैंक के मासिक बुलेटिन में कहा गया है कि इतिहास में पहली बार भारत में टेक्निकल रिसेशन आ गया है। अर्थशास्त्री मंदी की जो परिभाषा बताते है वो यही है कि लगातार दो तिमाही में अगर अर्थव्यवस्था बढ़ने के बजाय कम होने या सिकुड़ने लगे तब माना जाएगा कि मंदी आ चुकी है।

पिछली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ माइनस 23.9 थी ओर दूसरी तिमाही की ग्रोथ भी माइनस 9 के आसपास देखी जा रही इसलिए यह माना जा रहा है कि भारत मे मंदी प्रवेश कर चुकी है। लेकिन इसी बुलेटिन में आरबीआई यह भी कहता है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट ज़्यादा वक्त नहीं चलेगी क्योंकि धीरे धीरे आर्थिक गतिविधियों में सुधार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं. पर यह पूरा सच नही है RBI दरअसल इस नतीजे पर पुहचने में जिन पैरामीटर का इस्तेमाल कर रहा है वो सही नही है।

भारत में वाहनों की बिक्री देश की अर्थव्यवस्था का पैमाना माना जाता है। कई वाहन कंपनियों ने अक्टूबर में रिकॉर्ड बिक्री के आंकड़े जारी किए हैं। मारुति सुजूकी ने 18 फीसदी और हीरो मोटोकॉर्प ने 34 फीसदी बिक्री बढऩे की बात कही है। वाहन विनिर्माताओं द्वारा रिकॉर्ड बिक्री से उम्मीद जगी कि त्योहारी मौसम में ग्राहकों की मांग बढ़ी है, जो लॉकडाउन के दौरान खत्म सी हो गई थी। RBI ऐसे ही पैरामीटर्स का उपयोग कर कह रहा है कि आने वाले समय मे सुधार होगा।

लेकिन वाहन बिक्री के आंकड़े झूठे है क्योंकि वाहन डीलरों के आंकड़े इससे उलट हैं। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (फाडा) ने कहा कि अक्टूबर 2020 में वाहनों के कुल पंजीकरण में 23.99 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान देश भर में 14,13,549 वाहनों का पंजीकरण हुआ जबकि अक्टूबर 2019 में 18,59,709 वाहनों का पंजीकरण कराया गया था।

साफ है कि जमीन पर जो सच्चाई नजर आ रही है वह RBI के प्रोजेक्शन से बिल्कुल अलग है जब आप ऐसे गलत आंकड़ों से आकलन करते हैं तो आपके अनुमान गलत होना ही हैं।

दूसरी एक वजह ओर है जिसकी वजह से मंदी का दौर लंबा खिंचने का संकेत मिल रहा है जुलाई से सितंबर के बीच देश की कई लिस्टेड कंपनियों की बिक्री और ख़र्च में गिरावट के बावजूद उनके मुनाफ़े में तेज़ उछाल दिखाई पड़ा है। आप कहँगे कि यह तो अच्छे संकेत है लेकिन कम्पनियों के लाभ सच्चाई कुछ और हैं कंपनियां बिक्री बढ़ाने और मुनाफ़ा कमाने के बजाय ख़र्च घटाकर यानी कॉस्ट कटिंग का रास्ता अपना रही हैं। खर्च घटने का सीधा अर्थ यह है कि वह या तो अपने कर्मचारियों की छटनी कर रही है या उनकी तनख्वाह आधी दे रही हैं। जिसका सीधा मार्केट पर पड़ रहा है तनख्वाह न मिलने के कारण लोगों की क्रयशक्ति घट रही है मध्य वर्ग भी ख़र्च में कटौती का रास्ता अपना रहा है।

इस दिवाली मध्य वर्ग द्वारा की जा रही ख़र्च में कटौती साफ दिख भी रही है बाजारों में भीड़ हैं लेकिन बिक्री नही है मॉल सूने पड़े हैं। साफ दिख रहा है कि हालात बद से बद्तर की ओर जा रहे हैं मीडिया भी कोरोना की दूसरी लहर का हल्ला मचा कर रही सही ग्रोथ की संभावना को धूमिल कर रहा है।

भारत की अर्थव्यवस्था इस कोरोना काल मे अन्य विकासशील देशों की अपेक्षा बुरा परफॉर्म कर रही है, यही कारण है कि इसे मैं मंदी नही बल्कि डिप्रेशन का नाम दे रहा हूँ। मंदी कुछ तिमाहियों तक चलती है लेकिन यदि मंदी सालों तक खिंच जाती है, तो इसे डिप्रेशन के रूप में जाना जाता है। कम से कम भारत मे यह डिप्रेशन साफ नजर आ रहा है, डर यही है कि यह डिप्रेशन ‘ग्रेट डिप्रेशन’ में न बदल जाए !