पिछले कुछ समय में एक उद्योग समूहों के मामले, सुप्रीम कोर्ट की एक ही बैंच को सौंपे जाते रहे हैं

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क्या ऐसा संभव है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने एक विशेष उद्योग समूह के मामले केवल एक बैंच के सामने आए और हर बार वह बैंच उस उद्योग समूह के पक्ष में ही फैसला सुनाती रहे। आप कहेंगे कि यह तो असम्भव है। लेकिन यह भारत देश है यहाँ सब सम्भव है।

2019 के बाद से न्यायमूर्ति मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच में अडानी समूह की कंपनियों से जुड़े एक बाद एक लगातार छह मामले आए और हर बार फ़ैसले इस ग्रुप के पक्ष में गये हैं। कमाल की बात तो यह है, कि मिश्रा जी के रिटायर होने के पहले ठीक पहले सातवें मामले में भी फैसला अडानी समूह के पक्ष में सुनाया जाता है।

दो दिन पहले अडानी राजस्थान पावर लिमिटेड को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ी राहत देते हुए, राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों के समूह की उस याचिका को खारिज किया कर दिया है। जिसमें एआरपीएल को कंपनसेटरी टेरिफ देने की बात कही गई है, जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने राजस्थान विद्युत नियामक आयोग और विद्युत अपीलीय पंचायट के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसमे इसके खिलाफ अपील की गई थी।

इस फैसले से राजस्थान में सार्वजनिक बिजली वितरण संस्थाओं और उपभोक्ताओं को लगभग 5,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। यानी सीधा 5 हजार करोड़ का प्रॉफिट अडानी समूह को। ऐसा भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर किसी ने दिलाने की कोशिश नही की, अगस्त 2019 में वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अडानी समूह की कंपनियों से जुड़े कुछ मामलों में प्रक्रियागत अनियमितता का आरोप लगाते हुए भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, रंजन गोगोई को पत्र लिख कर पूछा था कि अडाणी समूह से जुड़े मामले जस्टिस अरुण मिश्रा की अदालत में क्यों लिस्ट किए जा रहे हैं ?

उनका आरोप था कि उस वर्ष उन मामलों को गर्मी की छुट्टी के दौरान सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा “अनुचित रूप से” सूचीबद्ध किया गया था। जिस लिस्टिंग को लेकर उन्होंने आरोप लगाया था, कि वह “स्थापित कार्यप्रणाली और प्रक्रिया (सुप्रीम कोर्ट) के मुताबिक़ बेहद अनुचित है,” उसके नतीजे के रूप में अडानी समूह की कंपनियों को “हज़ारों करोड़” रुपये का फ़ायदा पहुंचा है।

लेकिन इन सब आपत्तियों के बावजूद उन्हें मुकदमे सौपे जाते रहे। 2018 में भी चार जजों की प्रेस कांफ्रेन्स में यह मुद्दा भी उठाया गया था कि मुख्य न्यायाधीश बेशक रोस्टर के मालिक हैं, लेकिन अपनी “पसंद की पीठों” को “चुनिंदा मामले सौंप कर” वे प्रोटोकॉल तोड़ रहे हैं।

इंटरनेशनल ज्यूडिशियल कॉन्फ्रेंस 2020 में 20 देशो के जजों के सामने जज जस्टिस अरुण मिश्रा जी ने भाषण देते हुए कहा कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति मानते हैं, जो वैश्विक सोच रखते हैं और स्थानीय स्तर पर काम करते हैं, तो ये बात साधारण नहीं लगती। ऐसा शायद पहली बार ही हुआ कि किसी राजनीतिक नेता की तारीफ सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज ने सार्वजनिक रूप से की हो।

संविधान में शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत के अनुसार – न्यायपालिका का गठन किया गया है, उसे हर वो ताकत दी गयी जो उसे निष्पक्ष रखने में सहायता करती है। इन सबके बावजूद ऐसा होता है तो यह सब देखकर बड़ा अफसोस होता है।