नज़रिया – नफ़रत सबको बर्बाद कर रही है

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मध्यप्रदेश के इंदौर में आज (14 अप्रैल ) को  दो घटनाएं सामने आई हैं। पहली घटना उस दुकानदार से जुड़ी है, जिसने मुसलमानों को सब्जी बेचने से साफ इनकार कर दिया। जब मुसलमान उस दुकानदार की मरी हुई मानवता को जिंदा करने की कोशिश कर रहे थे, तो उसने साफ कह दिया कि हमें ‘ऊपर’ से आदेश है कि मुसलमानों को समान न बेचा जाए और ना ही उनसे सामान खरीदा जाए। इसके बावजूद उन मुसलमानों ने कहा कि इस माहौल में हमने बिना किसी भेदभाव के जरूरतमंदों को राशन बांटा है, खाने पीने का सामान बांटा है, बिना यह पता किए कि कौन हिंदू है कौन मुसलमान! और एक तुम हो जो मुसलमानों को सामान बेचने से इंकार कर रहे हो। इस पर उस दुकानदार ने फिर वही जुमला दोहराया कि ‘ऊपर’ से आदेश है।

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इंदौर के जिस मौहल्ले की यह घटना है वहां पर वह इकलौती दुकान है। इसके बावजूद ऐसा सांप्रदायिक ज़हर? यह बता रहा है कि भारतीय समाज का एक बड़ा हिस्सा कोरोना से पहले ही दिमाग़ी संक्रमित हो चुका था, सड़ चुका था। मुसलमानों को दुकानदार द्वारा सब्जी अथवा दूसरा सामान न बेचकर यक़ीनन मुसलमान तो नहीं मरेंगे, लेकिन इस बात पर जरूर मुहर लग चुकी है, कि ‘ऊपरी आदेश’ का पालन करने वाला वह दुकानदार अंदर से मर चुका है। ऐसा नहीं है कि समाज में पहले नफरत नहीं थी, नफरत तो थी लेकिन इस हद तक नहीं थी कि जब महामारी फैली हो तब एक वर्ग विशेष का दुकानदार एक समुदाय विशेष से नफरत की इस इंतहा तक पहुंच जाए। वर्तमान जो हालात हैं ये तो बदल जाऐंगे, लॉकडाउन भी खुल जाऐगा, लेकिन उस दुकानदार को सोचना होगा कि जिन मुसलमानों को उसने संकट के समय सामान बेचने से इनकार किया है उनसे नज़रें कैसे मिलाएगा?

दूसरी घटना भी इंदौर की ही है, यह महज़ इत्तेफाक है यह घटना भी आज की ही है। इंदौर में आज इंसान की जान समय पर एंबूलेंस न मिलने के कारण चली गई। इंदौर के पांडू राव चांदने को उनके बड़े भाई और पत्नी एंबूलेंस न मिलने की वजह से एक्टिवा पर बिठाकर दो तीन अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे। लेकिन कहीं उनका इलाज नहीं हुआ और एमवाय अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया। पहले ये परिजन एंबुलेंस का इंतजार करते रहे, जब एंबुलेंस नहीं मिली तो स्कूटी में ही उन्हें लेकर क्लॉथ मार्केट अस्पताल से एमवाय पहुंचे लेकिन तब तक सांसें साथ छोड़ चुकी थीं।

सोचिए! यह देश मुसलमानो से नफरत करने की कितनी बडी कीमत चुका रहा है, यह घटना उसी का जीता जागता प्रमाण है। इन दोनों घटनाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं। लेकिन एक समुदाय से कुंठा के कारण लोगों के सोचने समझने की ताक़त खत्म हो चुकी है, दिमाग़ी संक्रमित हो चुके हैं। उन्हें इससे कोई सरोकार नही है कि अच्छी स्वास्थय सेवाएं देना सरकार का फर्ज है, नौकरी देना, सस्ती शिक्षा देना यह सब सरकार का कर्त्वय है।

लेकिन अफसोस! न नौकरी चाहिए, न रोजगार चाहिए, न शिक्षा चाहिए, न अस्पताल चाहिए! समय पर एंबूलेंस क्यों नहीं आई यह समस्या नही है, हां कोई मुस्लिम मजदूर सब्जी वाला, फल वाला ‘उनके’ इलाक़े मे न आए इसकी सरदर्दी है। कुल मिलाकर भारतीय समाज का एक बड़ा हिस्सा नफरत में इस क़दर अंधा हुआ है कि वह भूल गया है कि सरकार के प्रति उसकी क्या जिम्मेदारी है, और उसके लिए सरकार की क्या जिम्मेदारी है? यह देश, इस देश का लोकतंत्र, इस देश का सेक्यूलरिज्म, इस देश का सामाजिक तानाबाना इस नफरत की क़ीमत अदा कर रहा है। जिसकी बदौलत दिन प्रतिदिन हालात खराब होते जा रहे हैं, और ऐसी ख़बरें सामने आ रहीं हैं जो मानवता का मुंह चिड़ा रहीं हैं।