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ग़ज़ल- मुसव्विर हूं सभी तस्वीर में मैं रंग भरता हूं

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हमेशा ज़िन्दगानी में मेरी ऐसा क्यूं नहीं होता
जमाने की निगाहों में मैं अच्छा क्यूं नहीं होता
उसूलों से मैं सौदा कर के खुद से पूछ लेता हूँ
मिरी सांसे तो चलती हैं मै ज़िंदा क्यूं नही होता
हरिक को एक पगली बेटा कह कर के बुलाती है
मगर उस भीड़ में तब कोई बेटा क्यूं नहीं होता
गये गुज़रे ज़माने की कहानी क्यों बताता है
भला इस दौर में आखिर करिश्मा क्यूं नही होता
मुसव्विर हूं सभी तस्वीर में मैं रंग भरता हूं
कभी भी मेरा कोई ख्वाब पूरा क्यूं नही होता
          अशफाक़ ख़ान”जबल”