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एसपी सिटी मेरठ द्वारा कहे शब्दों पर पूर्व आईपीएस की सलाह

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एसपी सिटी मेरठ अखिलेश के, मेरठ शहर के एक घटनास्थल पर कहे गये इस वाक्य  पर कि, ” खाते यहां की हो, बजाते पाकिस्तान की। पाकिस्तान  चले जाओ” पर बहुत से मित्रों की प्रतिक्रिया आ रही है। कुछ एसपी सिटी को शाबाशी दे रहे हैं तो कुछ और, तरह तरह की बातें कह रहे हैं। एसपी सिटी के बयान पर मामला राष्ट्रीय चर्चा में है और अगर यह  विवाद बढ़ा तो उनसे इस तरह के बयान पर स्पष्टीकरण भी मांगा जा सकता है। उनका यह कथन आपत्तिजनक है और इसपर कार्यवाही भी हो सकती है।
उन मित्रों से जो पुलिस के हर उस कार्य के पीछे, जो विधिसम्मत नहीं है, लामबंद होकर खड़े हो जाते हैं, से मेरा निवेदन है कि वे अनावश्यक शाबाशी और वाह वाही कर के उक्त अधिकारी के लिये समस्या न उत्पन्न करें। यह विवाद जैसे ही व्यापक होकर प्रचारित होगा तो सबसे पहले एसपी सिटी की ही गर्दन नपेगी। सरकार और डीजीपी चाह कर भी उनका बहुत बचाव नहीं कर पाएंगे। क्योंकि उनके इस तरह की बयानबाजी का कोई औचित्य नहीं है। इससे विभाग भी असहज स्थिति में हो जाता है। यह मेरा आकलन है और अनुभव भी। भीड़ नियंत्रण के समय अक्सर ऐसी परिस्थितियों से सामना होता है जब पुलिस अफसर खुद ही अनियंत्रित हो जाते हैं। यह अस्वाभाविक भी नहीं है। लेकिन, पुलिसजन ऐसी ही अस्वाभाविक स्थितियों को झेलने के लिये ट्रेंड भी होते हैं।
एसपी सिटी के ‘पाकिस्तान चले जाओ के बयान पर अगर एडीजी मेरठ की बात आपने सुनी होगो तो आप संकेत समझ सकते हैं। उन्होंने कहा है कि ” यह बात गुस्से में निकल गयी होगी, उन्हें यह नहीं कहना चाहिये था।” हो सकता है एसपी सिटी को यह ‘समझाया’ भी गया हो कि सोच समझकर बोलना चाहिये। अभी चीजें गर्म हैं जब सब सामान्य हो जाता है तो ऐसे मामलों में जांच पड़ताल होती है। जब जांच पड़ताल होतीं है तो फ़र्ज़ी शाबाशी वाले कहीं नहीं दिखते हैं। मदद उसी भीड़ में से, तब कभी कभी आती है, अगर आती है तो।
क्या घटना है, क्या संदर्भ है यह हम सब जो वीडियो मीडिया में आ रहा है उससे ही जान पा रहे हैं। भीड़ ने पाकिस्तान जिंदाबाद कहा हो तो भी और न कहा हो तो भी,  किसी भी पुलिस अफसर को इस प्रकार की भाषा और बयान से बचना चाहिए। हम पुलिसजन, एक ट्रेंड अफसर हैं। हमे भीड़ का मनोविज्ञान और भीड़ प्रबंधन सिखाया जाता है। हम कोई गिरोह नहीं है। जनता की तरह भीड़ और भावनाओं में बह जाने की अपेक्षा हमसे न तो विभाग करता है और न ही सरकार न ही कानून और न ही खुद जनता।
भीड़ बहुत से अनाप शनाप नारे लगाती है।  पुलिस को बल प्रयोग करने के लिए तरह तरह से उकसाती है। इसी में  पत्रकार जानबूझकर खबर बनाने के लिये ऐसे ऐसे सवाल पूछते हैं जिससे पुलिस ही घेरे में आये और कुछ ब्रेकिंग न्यूज़ मैटीरियल मिले।  पर ऐसी परिस्थिति में कानून, सरकार और विभाग, ड्यूटी पर नियुक्त अफसर से यही अपेक्षा करते हैं कि वह स्थिति बिना विवाद और नुकसान के नियंत्रित कर ले।
भीड़ एक गैर जिम्मेदार समूह होती है। जब वह बिगड़ैल हांथी की तरह उफनती है तो उसे बटोर कर ले गया नेता भी या तो मौके से सरक जाता है या भीड़ के अनुसार और अनुरूप आचरण करने लगता है। कुछ भी गड़बड़ होने पर, भीड़ से कोई नहीँ पूछने जा रहा है कि उसने यह नारा क्यो लगाया या क्यों उकसाया । पर पुलिस से सभी यह सवाल करेंगे कि आपने यह गैर जिम्मेदारी वाली बात क्यों कही। समस्या का समाधान हिकमत अमली से क्यों नहीं किया गया।
आज का समय सूचना क्रांति से सराबोर वीडियो युग का है। हर आदमी के पास कैमरा है। जो कही गयी एक एक बात और की गयी एक एक हरकत रिकॉर्ड करता है। कोई चाहे तो उंस रिकॉर्डिंग को एडिट कर के उसे मनचाहा स्वरूप भी दे सकता है। आप उसे डॉक्टर्ड वीडियो साबित करते रहिये । नेंट बंद हो तब भी उस रिकॉर्डिंग को  मोबाइल में संरक्षित कर के जब नेंट आये मनचाही जगह भेजा जा सकता है। वायरल किया जा सकता है। ऐसे सूचना के युग मे संयमित रहना और कानून को क़ानूनी तरह से लागू करना ही निरापद है। मेरी यह सलाह, मेरे हमपेशा मित्रों के लिये हैं।
पाकिस्तान से अगर नफरत है तो उसे कब्ज़ा कर लीजिए। तोड़ दीजिए। जो चाहे सो कीजिये। कुछ नेता और मंत्री तो 2014 के बाद से ही जब चाहते हैं, जिसे चाहते है उसे  पाकिस्तान भेज ही रहे हैं। पर यह बयान जहां नेताओ के लिये राजनीतिक लाभ और कुछ के लिये तोष देगा वहीं, हम पुलिसजन के लिये आपत्तिजनक माना जायेगा। अपना राजनीतिक एजेंडा पुलिस और प्रशासन के कंधे पर रख कर आगे न बढ़ाएं।
~ पूर्व आईपीएस  विजय शंकर सिंह