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बाबाओं के भक्त दिखाते हैं, भारत का अविकसित चेहरा

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अगर कोई हमसे पूछे कि हमने आज़ादी के बाद 70 सालो में क्या किया है तो हम कहेंगे ‘विकास’। क्यूंकि हमने बड़े बड़े माकन बना लिए, सड़के बनाई ,विदेशी निवेश होने लगा, कारखाने खुल गए ,अस्पताल खुल गए ,महिलाओ को स्वतंत्रता मिल गई,बच्चो को आधुनिक खेल खिलोने मिल गए।
कुछ इसी प्रकार हमने विकास का कार्यक्रम आगे बढाया। विकास हमारे लिए एक ऐसा शब्द बन गया है जिसे हम हर मुद्दे पर हर जगह गाते बजाते रहते है
वो बात अलग है कि आज तक विकास के केंद्र तक हम पहुँच नही पाए।
ऐसा इसलिए हो सकता है कि वास्तव में विकास को समझने ,जानने या परिभाषित करने के हमारे मापदंड गलत और कमज़ोर हो गये हैं।
एक अवस्था से निकलकर दूसरी अवस्था में जाना ही विकास नही होता निचली मानसिक अवस्था से निकलकर उच्च मानसिक अवस्था में जाना विकास का पहला पड़ाव हो सकता है।
भारत में कुछ लोगो की निचली और अपरिपक्व मानसिक अवस्था इस से पता चलती है कि लोग किस प्रकार गलत का अन्ध्करण करने लगते है ।
एक दिन पूरा भी नही हुआ है भारत के पांच राज्यों को जलते हुए ये अंग नासमझ लोगो की बंद बुद्धि का संकेत है।
एक प्रख्यात बाबा के अनुयायी होने के नाते उन्होंने अपने सर्वोच्च धर्म का पालन लोगों की जान लेकर किया है।
जिस देश की व्यवस्था के रहम पर जो अपने धर्म का पालन करते है अपना जीवन निर्वाह करते है उसी देश की न्यायिक व्यवस्था को कोसते हुए अपनी संपत्ति का विनाश करना समाज के लोगो की ऐसी मानसिकता को दर्शाता है जो विकास का परिणाम का कतई नहीं हो सकता।
विकास का आधार पीछे से आगे की ओर जाना होता है लेकिन यहाँ हम इतना पीछे आ चुके है जहां से आगे जाने में हो सकता है 70 साल और लगाने पडे।
ऐसा नहीं है कि किसी व्यक्ति/बाबा का अन्धकरण करने वाले लोग अनपढ़ हो,मानसिक रूप से पिछडे हो लेकिन वो लोग अपने बाबा के वचनों को व दिखावटी व्यवहार को को ही सत्य मान चुके है और उनका ये सत्य वास्तविक तथ्यों से कही ज्यादा मायने रखता है।
किसी साधारण व्यक्ति पर लगे शोषण के आरोप सत्य हो सकते है पर किसी बाबा पर नही।
क्यूंकि वो बाबा है ,ईश्वर से वह सीधे तौर से जुडे हुए है जो कोई गुनाह नहीं कर सकते।
ऐसी धारणा लिए किसी भी व्यक्ति को स्वयं को पढ़ा लिखा या “मॉडर्न” कहने का अधिकार नहीं हो सकता।
इस समझ से अभी भी लोगो की बड़ी संख्या दूर है की इश्वर किसी बाबा साधू या संतो पंडालो में नही नहीं बल्कि स्वयं में मिलते है।
अगर धार्मिक स्वतंत्रता को मानते हुए बाबाओ,प्रवचनों पर ढील दे भी दी जाए तो इन डेरो या बाबाओ को सुनना गलत नहीं है बशर्ते सही समझ, भावो का ज्ञान ,वास्तविकता से परिचय होना ज़रूरी है वरना बातों के जाल में फसना आसान हो जाता है ।
राम रहीम पर आरोप साबित होने के बाद भड़की हिंसा देखने पर वह आधुनिक भारत के लक्षण नहीं लगते। भारत आधुनिक सिर्फ मशीनों व कारखानों को लगाने में ही न हो बल्कि मानसिक परिपक्वता आधुनिकता का पहला पड़ाव हो तभी हम भौतिक और मानसिक विकास को प्राप्त कर पायेंगे।
भारत में घटने वाली हर घटना व दुर्घटना का दोष सरकार पर डालना उचित नहीं होगा जब नागरिक अपनी स्वतंत्रता का ,अधिकारों का मालिक स्वयं है तो समझ को विकसित करने का कुछ दायित्व उनको भी उठाना चाहिए।
इस वक्त हिंसा को देखते हुए बाबा के कुछ अनुयायी मानसिक रूप से शुन्यता तक आ चुके है जो सिर्फ भक्ति जानता है वास्तविकता नहीं।
उनको इस स्तर तक लाने में किसको अधिक दोषी समझा जाए बाबा को जो साधारण, भोली भाली जनता को बेवक़ूफ़ बना रहा था या उस जनता को जो असलियत समझना ही नहीं चाहती और भोली भली बनकर इश्वर की भक्ति में मग्न रही।