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बरबादी के पांच साल – जिम्मेदार कौन ?

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जिन अफसरों के सरकार के पांच साल बरबाद कर दिए, वे कौन हैं ? प्रधानमंत्री जब कोई बात कहते हैं तो उसे सुना जाना चाहिये। यह देश के नेता का वक्तव्य होता है। मीन मेख तो बाद की बात है पर उनका कहना हल्के में नहीं लेना चाहिये। चाहे वह मन की बात हो या सदन की या बैठकों में कही गयी बात हो। प्रधानमंत्री जी ने अफसरों की बैठक की और अंग्रेजी दैनिक हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, उन्होंने अफसरों की बैठक में कहा कि,

“आप ने मेरे पांच साल बरबाद कर दिए हैं और अब आगे नहीं करने दूंगा।”  इस बयान में जहां पिछले बरबाद हुये पांच सालों की खिन्नता है तो आगे के आने वाले पांच साल बरबाद न हो इसके प्रति प्रधानमंत्री का सचेत भाव भी हैं।

इस बयान में दोनों ही बातें सारगर्भित हैं। पीएम को यह आभास हो गया है कि पिछले पांच साल बरबाद हो गए हैं। और यह भी पता है कि यह बरबादी अफसरों ने ही की है। पर इन पांच सालों की बरबादी के लिये जिम्मेदार कौन अफसर है, यह भी सरकार को जानना चाहिये। उन अफसरों की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिये और उन्हें दंडित किया जाना चाहिये। नोटबन्दी, जीएसटी आदि कई मास्टरस्ट्रोक पिछले पांच साल में उछले पर हाय, वे सब बाउंड्री पर ही लपक लिए गए। वे निर्णय गलत साबित हुये। उनके उद्देश्य पूरे नहीं हुए। अर्थव्यवस्था को जहां गति मिलनी चाहिये थी, उसे प्रगति पथ पर कुलांचे भर कर दौड़ जाना चाहिये था, वहीं अर्थव्यवस्था सदगति की ओर चल पड़ी।
यह कौन अफसर है जिसने नोटबन्दी का आइडिया प्रधानमंत्री जी को दिया, उसका ड्राफ्ट बनाया, नक़ली नोट, आतंकवाद और काले धन के मृत्यु की बात कही, और यह भी कहा कि सबकुछ डिजिटल हो जाएगा तो स्वच्छ भारत की तरह स्वच्छ आर्थिकी भी हो जाएगी। पर न भारत स्वच्छ हुआ और न अर्थतंत्र। उन अफसरों ने निश्चित ही प्रधानमंत्री को धोखा दिया, मास्टरस्ट्रोक पर कैसे बल्ला कहाँ उठाया जाय, कहां गेंद को हिट किया जाय, और किधर उछाला जाय यह सब ढंग से ब्रीफ नहीं किया। न अध्ययन किया और न ही मसौदे ठीक से बनाये। आज पीएम को अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि उनके पांच साल बरबाद हो गए।
यह पांच साल पीएम के ही नहीं बरबाद हुये हैं। बल्कि अडानी और अम्बानी को छोड़ कर, हम सबके बर्बाद हो गए हैं। बेरोजगारी आज शिखर पर है। किसानों की आत्महत्या अब एक खबर बन कर गुजर जाती है। झिंझोड़ती नहीं। जब रोज दुःख भरी खबरें मिलने लगती हैं तो, वे संतप्त करना छोड़ देती है। वैसे ही जैसे पुलिस के लिये हत्या की खबर और डॉक्टरों के लिये अस्पताल में किसी मरीज के मरने की खबर। सरकारी कम्पनियां बंद हो रही है। जो बंद नहीं हो रही थीं वे बंद की जा रही हैं। उन्हें जानबूझकर निजी उद्योगपतियों को बेचने लायक बनाया जा रहा है। नौकरियां जा रही हैं। छोटे मंझले और अच्छे मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां धीरे धीरे बंद हो रही है। अर्थशास्त्री कह रहे हैं अर्थव्यवस्था वेंटिलेटर पर है। प्रधानमंत्री जी सच कह रहे हैं पांच साल बरबाद हो गए। आखिर यह नीति बना कौन रहा है ? क्या सोच कर यह नीति बनाई जा रही है ? कौन अफसर है जो यह सब योजनाओं को कागज पर उतार रहा है ? क्या उद्देश्य उसका है ? 2014 के बाद आज छह साल पूरे हो रहे हैं तो पीएम को कहना पड़ रहा है कि पांच साल बर्बाद हो गए ।
पांच सालों में मीडिया ने केवल पाकिस्तान की फिक्र की। घरेलू आर्थिक समस्याओं की तुलना में, पाक की आर्थिक स्थिति से हमारा मीडिया तँत्र अधिक चिंतित नज़र आया। रोज़ रोज़ वे फिक्र ए पाकिस्तान में मुब्तिला थे। मौलाना डीजल के इस्लामाबाद मार्च ने भले ही इमरान खान को चैन से सोने दिया हो, पर हमारे मीडिया की उसने नींद उड़ा रखी थी। सचमुच इन पांच सालों की कोई उपलब्धि नहीं है। वे बरबाद हो गए। कोई बात नहीं। गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में, वह तिफल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले। यह शेर मेरे एक चाचा जी गांव में जब कोई लड़का फेल हो जाता था तो उसका रिजल्ट देखने के बाद उसके पीठ पर मुक्का मार कर कहते थे। अचानक यह शेर याद आया तो सोचा आप सब को भी पढ़ा दूँ। शेर है किसका, यह मुझे नहीं मालूम ।
अब प्रधानमंत्री जी को चाहिये कि कम से कम यह पांच साल तो बर्बाद न होने दे। पर इसके साथ साथ उन अफसरो को ज़रूर चिह्नित करें जिन्होंने उनके पांच साल बर्बाद कर दिए हैं। क्योंकि वे पांच साल केवल पीएम यानी सरकार के ही नहीं थे, हम सबके भी थे। बरबाद करने वाले लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिये। कही बरबादी की कथा लिखने वाले अफसर गिरोहबंद पूंजीपतियों के स्लीपर सेल तो नहीं है जो बर्बाद कर के रिटायर होते ही पूंजीपतियों के दरबार मे मनसबदार बन जाते है ? यह देश की प्रगति और अस्मिता के प्रति अपराध है।