दिलीप कुमार जिनके साथ अमिताभ एक्टिंग करते वक़्त डरते थे

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हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार का 7 जुलाई की सुबह सात बजे दुनिया को अलविदा कह कर चले गए। 98 वर्षीय दिलीप कुमार कई दिनों से बीमार चल रहे थे। सांस लेने में तकलीफ के चलते पहले भी उन्हें कई बार हिंदुजा अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। लेकिन आज आखिरकार दिलीप साहब ज़िंदगी की जंग हार गए।

उनके निधन की जानकारी दिलीप साहब के ही ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से दी गई। दिलीप साहब के ट्विटर हैंडल से ये ट्वीट उनके एक पारिवारिक दोस्त ने किया था।

https://twitter.com/TheDilipKumar/status/1412600233062699008?s=19

आज हम सबके दिल में बसने वाले दिलीप कुमार साहब वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर में यूसुफ खान के नाम से जाने जाते थे। यहां उनका पुश्तैनी घर आज भी मौजूद है। यूसुफ खान से दिलीप कुमार बनने तक का सफर उनका यह काफी लंबा और संघर्ष भरा था।

एक समय ऐसा भी था जब दिलीप कुमार ने सैंडविच का स्टॉल भी लगाया। यह उनकी मेहनत और शानदार अभिनय और अनोखे अंदाज का ही नतीजा है कि उनके जाने पर देश में हर व्यक्ति को आंखें नम हैं।

शक्ति के बाद “अमिताभ” ने साथ काम नहीं किया

दिलीप कुमार नेचुरल एक्टर थे,उनकी आंखों से निकले आंसू,उंगली उठाते हुए चुनौती देते हाथ या उर्दू से लबरेज़ उनकी ज़ुबान इतनी दमदार थी कि बहुत से कलाकार उनके साथ काम करते हुए डरा करते थे,और इन्हीं में से एक नाम हैं अमिताभ बच्चन।

बॉलीवुड के सबसे कलाकर एक्टर में से एक अमिताभ और ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार ने साथ मे सिर्फ एक ही फ़िल्म की है और इसमें दिलीप कुमार आमिताभ के पिता का रोल किया है।

 

लेकिन बहुत से जानकारों के ये कहना था कि अमिताभ को डर था कि उनका रोल और उनकी अहमियत दिलीप कुमार के सामने दब जाएगी,इसलिए वो अब दिलीप कुमार के साथ फ़िल्म नहीं करेंगे, और ऐसा हुआ भी।

11 दिसंबर को हुआ था जन्म

दिलीप कुमार ब्रिटिश इंडिया के पेशावर स्थित किस्सा खावानी बाजार एरिया की हवेली में 11 दिसंबर को जन्मे थे।उनकी मां का नाम आयशा और पिता का नाम लाला गुलाम सर्वर खान था। दिलीप कुमार उनके 12 भाई बहनों में से एक थे।

दिलीप कुमार ने अपनी प्राथमिक शिक्षा नासिक के देओली स्थित बार्नेस स्कूल से प्राप्त की थी, कपूर खानदान के सुपरस्टार राजकपूर उनके बचपन के दोस्त थे। दोनों ने अपना बचपन एक ही मोहल्ले में बिताया था।

जब दिलीप साहब को खोलना पड़ा था सैंडविच स्टॉल

1940 में दिलीप कुमार और उनके पिता की किसी बात पर आपस में बहस हो गई थी। जिसके चलते उन्होंने अपना घर छोड़ दिया। और पुणे आ कर रहने लगे। यहीं पर आकर अपना गुजारा चलाने के लिए उन्होंने एक पारसी कैफे ओनर और वृद्ध एंग्लो इंडियन कपल की मदद से अपना सैंडविच स्टॉल खोला था।

पढ़े लिखे और अच्छी अंग्रेजी का ज्ञान होने की वजह से उन्हें यह कॉन्ट्रैक्ट मिला था। कॉन्ट्रैक्ट के खत्म होने के बाद दिलीप कुमार ने इस समय पूरे पांच हजार रुपये बचाए थे। और फिर दिलीप साहब अपने मुंबई वाले घर पर वापस लौटे गए।

नौकरी करते हुए मिला फिल्मों में चांस

घर के खर्चों में पिता करने के लिए उन्होंने 1943 में दिलीप साहब एक नौकरी की तलाश करने लगे और उनकी ये तलाश की बॉम्बे टॉकीज में जाकर खत्म हुई थी।. उर्दू भाषा पर पकड़ होने की वजह दिलीप कुमार स्टोरी राइटिंग और स्क्रिप्टिंग का काम किया करते थे।

उस समय बॉम्बे टॉकीज की मालकिन एक्ट्रेस देविका रानी ने उन्हें सुझाव दिया कि वह अपना नाम युसुफ खान से बदल कर दिलीप कुमार रख लें, और उन्होंने ऐसा ही किया।

इसके बाद देविका ने उन्हें फिल्म ज्वार भाटा में कास्ट किया, जो 1944 में रिलीज हुई थी। हालांकि इस फिल्म पर लोगों का कोई खास ध्यान नहीं ध्यान नहीं गया था।

ट्रेजेडी किंग के नाम के कारण डिप्रेशन में चले गए थे दिलीप

कुछ फ्लॉप फिल्में देने के बाद दिलीप कुमार और एक्ट्रेस नूर जहान ने साथ मिलकर फिल्म जुगनू में काम किय था। और यह फिल्म उनकी पहली हिट फिल्म थी। इसके बाद उन्होंने शहीद, मेला और शबनम जैसी हिट फिल्में बनाई और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

यह वही दौर था जब उन्होंने स्क्रीन पर अधिकतर गंभीर रोल्स निभाए। इसी की वजह से उन्हें “ट्रैजेडी किंग” के नाम से जाना जाने लगा। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इन्हीं किरदारों की वजह से वो डिप्रेशन में रहने लगे थे।

इसके बाद उन्होंने डॉक्टर की मदद ली और डॉक्टर ने दिलीप साहब को फिल्मों में खुशमिजाज रोल्स निभाने की सलाह दी। फिर उन्होंने ऐसा ही किया।

जिनके प्यार में दीवानी थीं देश की हजारों लड़कियां

दिलीप के कुमार का नाम और काम दोनों ही फैंस के सर चढ़ कर बोलते थे। लोग उनकी एक भी फिल्म मिस नहीं किया करते थे,देश की हजारों लड़कियां उनके प्यार में दीवानी थी।

यहां तक कई अदाकारा भी उन्हें मन ही मन चाहती थीं। उन ही अदाकाराओं में से एक थीं, उनकी पत्नी सायरा बानो जो उनसे उम्र में काफी छोटी हैं।

दिलीप कुमार और सायरा बानो का निस्वार्थ प्रेम

दिलीप कुमार और सायरा बानो की मोहब्बत आज के ज़माने में निस्वार्थ प्रेम की एक अमर मिसाल की तरह कायम हो गई है। जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता। उनकी मोहब्बत के किस्से भी कम ही लोगों को मालूम हैं।

दिलीप कुमार सायरा बानो से इतना प्यार करते थे कि विलायत से लौटकर जब सायरा वापस आईं, तो दिलीप कुमार हर रोज रात को चेन्नई से फ्लाइट लेकर सायरा से मिलने जाते और तड़के सुबह वापस शूटिंग के लिए चेन्नई आ जाया करते थे।
जाया करते थे।

पहली बार सायरा बानो को घुमाने के ली थी परिवार से इजाज़त
दिलीप साहब सायरा बानो को अपनी गाड़ी में सैर करना चाहते थे। लेकिन सायरा के परिवार से इजाज़त लिए बिना उन्हें सैर पर ले जाना दिलीप साहब को मुनासिब नहीं लगा।

इसीलिए उन्होंने सायरा को अपनी गाड़ी में सैर करने से पहले बाकायदा उनकी दादी और मां से इजाज़त ली थी। सैर के ही दौरान उन्होंने सायरा बानो के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया था। हालांकि, तब सायरा बानो को लगा था कि दिलीप कुमार यूं ही उन्हें इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहे हैं।

70 का वो दौर जब दिलीप कुमार ने देखी नाकामयाबी

दिलीप कुमार ने अपने करियर की बड़ी से बड़ी हिट फिल्म दी, जिसमें से सबसे बड़ी हिट फिल्म फिल्म मुगल-ए-आजम थी। इसमें दिलीप कुमार ने शहजादे सलीम का किरदार निभाया था। यह बॉलीवुड के इतिहास की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी, साथ यह फिल्म एक या दो सालों तक नहीं बल्कि पूरे 11 सालों तक टॉप पर बनी रही।

लेकिन 1970 का एक समय ऐसा भी रहा जब दिलीप कुमार ने अपने करियर में नाकामयाबी का दौर भी देखा। उनकी बहुत सारी फिल्में फ्लॉप हो गईं और कई फिल्में उनकी जगह राजेश खन्ना और संजीव कुमार को मिलने लगीं।

तब उन्होंने फिल्मों से पांच सालों के लिए दूरी बना ली और 1981 में क्रांति से फिर एक बार फिल्मों में धमाकेदार कमबैक किया।. 1991 में रिलीज़ हुई सौदागर उनके करियर की आखिरी सफल फिल्म थी। दिलीप साहब की 1998 में आई किला थी। लेकिन ये फिल्म भी फ्लॉप हो गई।

भारत समेत पाकिस्तान का भी सर्वोच्च सम्मान

दिलीप कुमार भारतीय सिनेमा के महान अदाकारों में से थे। उनका नाम भारतीय एक्टर के रूप में सबसे ज्यादा अवॉर्ड्स अपने नाम करने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है।

अपने 50 सालों के फिल्मी करियर में उन्होंने 8 फिल्मफेयर अवॉर्ड्स (बेस्ट एक्टर), एक फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, नेशनल फिल्म अवॉर्ड, पद्मभूषण, पद्म विभूषण के साथ फिल्मों का सबसे बड़ा दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड भी अपने नाम किया।

यही नहीं, उन्हें पाकिस्तान सरकार द्वारा दिया सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशां-ए-पकिस्तान दिया गया था। इसीलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि दिलीप कुमार साहब जैसा सितारा ना कभी किसी फिल्म इंडस्ट्री में था और ना होगा।