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ब्रांडेड आईटम की लत में कहीं आप बेवकूफ़ तो नहीं बन रहे ?

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महंगे सस्ते की हमारी साइकोलॉजी को कम्पनियां और ब्रांड्स बख़ूबी समझते हैं, पता नहीं क्यों हमें लगता है कि जो चीज़ जितनी महँगी है उतनी बेहतर है। और जिसके पास ब्रांडेड चीज़ें नहीं हैं मतलब औक़ात से बाहर हैं उसकी। स्टेटस के रौब के लिये कुछ भी कर सकते हैं।
कई सो कॉल्ड ब्रांड ऐसे ही खड़े हुए हैं 250 की चीज़ 20,000 में बेचकर। अमेरिका की एक टॉप कॉस्मेटिक कम्पनी की मालकिन ऐसे ही रातों रात अमीर हुई थी। कुछ जड़ी बूटियों और इसेंशियल ऑयल्स से बेहतरीन खुशबू ईजाद की।
जब लोशन्स की औसत कीमत 5 से 6 डॉलर होती थी, तब उसके विज्ञापन की टैग लाइन थी, क्या कोई लोशन 115 डॉलर का हो सकता है? साथ में चमकती दमकती चिरयौवना त्वचा का वादा तो था ही, वह ब्रांड ब्लॉक बस्टर हिट साबित हुआ।
उसकी प्रतिद्वंद्वी कम्पनी से पूछा गया कि आखिर उसमें ऐसा क्या है जो आपके प्रोडक्ट्स में नहीं है? जवाब मिला, हमारे प्रोडक्ट्स ‘पर्याप्त महंगे’ नहीं है। उस कम्पनी और ऐसी ही दूसरी कम्पनियों ने यही किया कि महंगे कॉस्मेटिक्स की नई रेंज निकाल दी और अधिकतर सफल हुए।
आज भी 4000 की क्रीम 2000 की लिपस्टिक्स मामूली बात हैं, स्टेटस सिम्बल माना जाता है साथ ही यह भी कि जितना महंगा कॉस्मेटिक, उतना अच्छा।
एड भी हमें यही बताते हैं, एक लड़की उसकी बहन को कहती है बेसन पकौड़े बनाने को होता है चेहरे पर लगाने को ये क्रीम ले। मने हल्दी मलाई बेसन कुछ मत लगाओ, इनके एक्सट्रेक्ट निकालकर या सिंथेटिक केमिकल डालकर हम जो अल्लम गल्लम बना रहे हैं उसे ही चुपड़ो।
ऐसा ही कपड़ों के मामले में है। बांग्लादेश के दड़बे नुमा बन्द कमरों की फैक्ट्रियों में 17-18 घण्टे काम कराके 2-5 प्रति शर्ट सिलाई देकर जो शर्ट्स तैयार किये जाते हैं, विदेशी कम्पनी का लोगो लगने मात्र से हज़ारों में बिकते हैं और हम शान से पहनते हैं.
कुल मिलाकर हम लोग लुटने बैठे रहते हैं बस कोई हमें तरीके से मक्खन लगाकर आप तो जहाँपनाह हैं अज़ीमुश्शान हैं आपके शयाने शान ही शाही चीज़ें होनी चाहिये, वाली चापलूसी करके अपनी कौड़ी साठे की चीज़ें लाखों में बेच सकता है। हाय री शान.