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असम की राजनीति में "बदरुद्दीन अजमल" का उदय कैसे हुआ?

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वह लोग भी बदरुद्दीन अजमल क़ासमी को दलाल घोषित कर रहे है जिन्हें यह भी मालूम नहीं कि असम की राजनीति का केंद्र बिंदु क्या है। असम में बदरुद्दीन अजमल के राजनीतिक उदय को समझने के लिए थोड़ा इतिहास में जाना पड़ता है।
असम के दो आतंकी संगठनों “बोडो लिबरेशन टाइगर्स फ़ोर्स (बीएलटीएफ)” और “उल्फ़ा” की गतिविधियों से केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व परिचित है। बोडो और उल्फ़ा ने बारी-बारी से असम के आदिवासियों और बंगाली मुसलमानों का नरसंहार किया है।
मैं ऐसे दर्जनों आदिवासी और मुसलमान परिवारों से मिला हूँ जिनके परिवारों को ईद और क्रिसमस की रातों में मौत के घाट सुला दिया गया है। ऐसे कई घर मिलें जिनकी दीवारों पर आज भी एके-47 की गोलियों की सुराख़ नज़र आ रही थी।
सन 2001 में असम में तरुण गोगोई के नेतृत्व में असम में कांग्रेस की सरकार बनती है। आनन-फानन में राज्य सरकार ने सन 2003 में आतंकी संगठन बीएलटीएफ का समझौता केंद्र की बाजपेयी सरकार से कराती है। परिणामस्वरूप केंद्र सरकार ने चार जिलों को मिलाकर बोडोलैंड टेरीटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (BTAD) का निर्माण करती है।
सन 2005 में केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और असम में तरुण गोगोई की सरकार थी। उस समय बोडोलैंड टेरीटोरियल कौंसिल का चुनाव कराया गया। चूंकि असंवैधानिक तरीक़ा से संविधान के शेड्यूल-VI में संशोधन करके बोडोलैंड को ट्राइबल एरिया घोषित कर दिया। जिस कारण बंगाली मुसलमान और आदिवासी ओबीसी की प्रतिनिधित्व ख़त्म कर दी गयी। असम की तरुण गोगोई सरकार ने हठधर्मिता का परिचय देते हुए आतंकी बीएलटीएफ की राजनीतिक विंग बोडोलैंड पीपल फ्रंट के साथ लगभग 13 वर्षों तक गठबंधन बनाये रखा।
मई 2005 के डेवलपमेंट के बाद बंगाली एथनिसिटी के मुसलमानों को अपनी वजूद की लड़ाई खुद लड़ना था और हथियार के ताक़त पर बोडो आतंकी से लड़ना कठीन था। उसके बाद ही अस्तित्व की लड़ाई को लड़ने के लिए ही दिसंबर 2005 को मौलाना बदरुद्दीन अजमल क़ासमी के नेतृत्व में “आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट” का गठन हुआ।
देश के उर्दू नाम वाले लिबरल इतने कमज़ोर विचार के हो चुके है कि उर्दू नाम वाले कि पार्टी इनको दलाल ही नज़र आती है। शशि थरूर ने भारत को आने वाले दिनों में हिन्दू पाकिस्तान के रूप में इंगित किया तब यह फिलोसोफी का हिस्सा बन गया और यदि यही बात असदुद्दीन ओवैसी साहब बोल गये होते तब उर्दू नाम वाले लिब्रलों कि सेक्युलरिज़्म ख़तरे में पड़ती। भाईयों, सेल्फ हैट्रेड के शिकार हो जल्दी ईलाज कराओ।