अमोल पालेकर के भाषण को क्यों रोका गया ?

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हुकूमतें किसी की नहीं सुनतीं। उस अभिनेता की भी नहीं जिसने कूड़ा फिल्मों के दौर में भी आर्ट फिल्मों को ज़िंदा रखा। अगर कोई अभिनेता अपनी बात रखना चाहे तो सरकार के कारिंदे उसकी ज़ुबान पकड़ कर वापस कुर्सी पर बैठा देते हैं।
अमोल पालेकर ने संस्कृति मंत्रालय के किसी फैसले पर अपनी असहमति जतानी भी चाही तो उसे सरकार पर हमला मानकर उन्हें टोकने की क्या ज़रूरत थी?
नैशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट के कार्यक्रम में बोलने के लिए उन्हें आमंत्रित तो किया गया लेकिन जब वो अपनी बात रख रहे थो तो रोक दिया गया। कार्यक्रम के बीचोंबीच 75 साल के वरिष्ठ कलाकार को रोका तो गया ही, बाद में डायरेक्टर महोदया ने खुलकर उन पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की।
उन्होंने अमोल पालेकर से कहा कि अपने विचार रखने से पहले बताना चाहिए था। पालेकर ने पूछ ही लिया कि क्या आप मेरे भाषण को पहले से सेंसर कर देना चाहती थीं?
यूं भी पालेकर सीधे तौर पर मोदी या शाह पर हमला नहीं बोल रहे थे। वो बस इतना कह रहे थे कि आर्ट गैलरी इन दिनों अपनी स्वतंत्रता खो रही हैं। वो गैलरी के कामकाज के तरीके पर सवाल खड़ा कर रहे थे।पिछले साल अक्टूबर तक नैशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में एक सलाहकार समिति होती थी जिसमें स्थानीय कलाकार शामिल थे। अब इस समिति को सीधे संस्कृति मंत्रालय चलाने लगा है। यही उनकी शिकाययत थी।
अगर एक कलाकार अपनी बात कहेगा तो ज़ाहिर है कहीं सहमत होगा और कहीं असहमत लेकिन हर असहमति को अपना विरोध मान लेना इस सरकार और उसके कारकूनों की आदत हो चली है। आगे से अमोल पालेकर को नहीं अनुपम खेर को बुलाना।