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 गालियों के साथ साथ कह रहे थे “मुल्ले ले तुझे आज़ादी दे देता हूँ”

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देश मे चल रहे हालात ने नींद उड़ा दी है, सिर्फ एक ही बात बार बार सामने जाती है।  आखिर और कितना ? घरो में घुस कर महिलाओ पर हमला आख़िर मासूम बच्चों पर इसका क्या असर पड़ेगा, आखिर बच्चों के दिमाग मे पुलिस की छवि कैसी बनेगी, क्या हमारे वतन का भविष्य उज्वल हो पायेगा ?
लखनऊ के एक परिवार से बात हुई, उन्होंने अपने घर के हाल दिखाए जो की बहुत ही खराब थे। दरवाज़ा टूट चुका था किचन के बर्तन डब्बे सब ज़मीन पर पड़े हुवे थे, कढ़ाई का अड्डा ( लकडी का साँचा ) बिखरा पड़ा था। वाशबेसिन चकनाचूर हो चुका था, बच्चे के लिए बड़ी मुसिबत से किस्तो पर एक कम्प्यूटर खरीदा था, उसकी एलसीडी चकनाचूर हो चुकी थी। बच्चे डर से सिसकियाँ ले रहे थे, पत्नी बच्चों को बहलाने में लगी थी, तो बूढ़ी मां अपने चश्मे को लेकर परेशान थी। लेकिन उनमें से किसी को नही पता था जो कुछ भी हमारे साथ हुआ वो क्यों हुआ।

उनका कहना है हम सब घर मे बैठे चाय पी रहे थे। तभी अचानक से शोर हुआ, हमने देखा कुछ पुलिस वाले लाठी और बन्दूक लेकर दरवाज़े पीटते आगे बढ़ रहे थे। तभी हमने दरवाज़े बन्द कर दिए, अभी पिछले हफ्ते ही तो हमने दरवाज़े बदलवाए थे, क्योंकि सर्दियों में चोरी का डर बहुत रहता है। हमारे मुहल्ले में कई बार चोरी हो चुकी थी, हमारे दरवाज़े बन्द करने के एक मिनट बाद ही बहुत जोर जोर से दरवाज़ा पीटने लगे, हमने चाहा कि खोल दें, तो बच्चे डर से हमसे लिपट गए, तब तक तो हमारा दरवाज़ा तोड़ कर, पाँच छः पुलिस वाले अंदर आकर हमे पीटने लगे। एक दो डंडे तो हमारे मासूम बच्चे को भी लग गए जिसके निशान उसके बदन पर दिख रहे है, पुलिस वालों ने हमे वो वो गालियां दी है। जो शायद हमारे घर की औरतें या बच्चे अभी तक नही सुने होंगे,  गालियों के साथ साथ कह रहे थे कि मुल्ले ले तुझे आज़ादी दे देता हूँ।

शायद हमारे परिवार के लिए ये सबकुछ अजीब था, हमने तो आज तक आज़ादी का मतलब ही नही जाना था। हम तो ये जानते थे कि पन्द्रह अगस्त को हम अपनी पांच साल की बेटी के स्कूल जाते है, उस दिन हम आज़ादी का जश्न मनाते हैं। और फिर घर वापस आकर उसी ग़रीबी की जंजीरों में जकड़ जाते हैं। लेकिन जो आज़ादी आज हमें ये पुलिस वाले दे रहे थे, हम उसका मतलब ही नही जानते हैं। तब तक उस पांच साल की फूल सी बेटी ने पूछ लिया कि अब्बा क्या आपने आज आज़ादी मांगी थी , जो वो लाठी वाले अंकल कह रहे थे। यकीन जानिए उस बाप के मुँह से शब्द नही निकले आँख से आंसू पहले निकल पड़े।
 
तब तक बूढ़ी मां बोल उठी, अरे फोन पर बात बाद में कर लेना पहले लड़के को डॉक्टर के पास ले जाओ, उसकी चोट लगी है। हमारे पूछने पर उस बाप की आंखों से आंसू के साथ एक अल्फाज़ बाहर आया, ” बच्चे के पीठ पर पुलिस की लाठी पड़ी है” वो दर्द से तड़प रहा है। बच्चे की उम्र महज़ तीन साल है ,  लेकिन अभी बाहर नही निकल सकता हूँ, क्योंकि पुलिस अभी भी आस पास ही टहल रही है। और मैंने तो कुर्ता पहन रखा है, और दाढ़ी भी है हमे डर है, कि कही फिर से हमपर हमला न कर दे और हमारे बच्चे को और चोटें आ जाये। ये कहकर फोन को काट दिया, लेकिन हमारे दिल ओ दिमाग को बैचेन कर गया। तभी याद आया प्रधानमंत्री का वो अभी अभी का बयान जिसमे उन्होंने कहा था, कि दंगाई दूर से ही पहचान में आ जाता है। क्योंकि वे एक खास किस्म की पोशाक में होता है अब समझ आया कि उनका इशारा किधर था। अब फैसला आप पर छोड़ देता हूँ आप क्या कहेंगे ?

 
पुलिस के मुताबिक पुलिस किसी के घर मे नही घुसी है। जबकि पुलिस के बर्बरता के हज़ारो वीडियोज़ सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं। अब ये गरीब इंसाफ किस्से मांगे जब ज़ुल्म करने वाला ही पुलिस है, और सोने पर सुहागा ये है, कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पहले से एक खास धर्म एक मज़हब को टारगेट किये हैं। अब इन गरीबो की आह इनकी दीवारों से टकरा कर दम तोड़ देगी, लेकिन उस मासूम बच्चे का दर्द उस मासूम बच्ची का सवाल न उसका बाप भुला पायेगा न उसकी माँ भुला पाएगी।
सच तो ये है कि हम भी इस सवाल को इस दर्द को कभी भुला नही पाएंगे,  हम भी एक बच्चे के बाप हैं। हमे पता है कि अपने मासूम से बच्चे के इशारे पर हम अपनी जान देने को तैयार रहते हैं। कीमती से कीमती चीज़ उसके इशारे से पहले उसके क़दमो में डालने की कोशिश करते हैं, उसका रोना हमे तड़पा कर रख देता है चीख तो बहुत दूर की बात है। उस मासूम की पीठ पर जब लाठी पड़ी होगी तो वो कैसे चीख मार कर रोया होगा, उस चीख को वो पुलिस वाले एन्जॉय कर सकते हैं। लेकिन वो बाप की सिसकियों में उस चीख को हमने महसूस किया है, ये दर्द एक नासूर की तरह तकलीफ देह है।

आखिर में एक बात कहूँगा !  साहब आप नें हुक्म दिया सिपाहियों ने उसकी तामील की, लेकिन उस जुर्म की सज़ा जो जुर्म उस शख्स ने किया ही नही, उसकी फूल सी बच्ची और मासूम बच्चे को मिली है। साहब इसी को कहते हैं, ज़ालिम हुकूमत या साफ लफ़्ज़ों में कह दूं ये बेऔलाद तानाशाह का शासन है। जिसमे हमे सांस लेने से पहले उसकी परमिशन लेनी पड़ेगी।

लश्कर भी तेरा है और सरदार भी तेरा है, सच को झूठ लिखने वाला अखबार भी तेरा है
जुर्म मुजरिम करता  है सज़ा बेगुनाह को मिलती है, क्योंकि सरकार भी तेरी है दरबार भी तेरा है