जाट और मुस्लिमों को एक स्टेज पर लाना चाहते हैं अखिलेश और जयंत चौधरी

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उत्तर प्रदेश में चुनावी रण तैयार हो रहा है,सत्ता में काबिज़ भाजपा हो या विपक्ष के तौर पर खड़ी समाजवादी पार्टी दोनों ही ने अपनी कमर कस ली है,अखिलेश यादव ने भाजपा की सरकार पर सीधे आरोप लगाना और उनकी सरकार की कमियां गिनाना शुरू कर दिया है ।

वहीं,बसपा सुप्रीमों मायावती भी अब चुनावी रंग के माहौल को ध्यान रख कर सरकार पर हमलावर हो रही हैं,इसके अलावा 32 साल सालों से सत्ता से बाहर कांग्रेस भी प्रियंका गांधी के नेतृत्व में अपना पूरा जोर लगा रही है।

इन सभी विपक्षी दलों की कोशिशों के बावजूद एक दल ऐसा है जो किसान,गन्ना मूल्य और कृषि बिलों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के समर्थन में है और अपना पूरा ध्यान किसानों की समस्याओं पर लगाये है,यहां बात हो रही है “रालोद” यानी राष्ट्रीय लोक दल की जिसका पश्चिमी यूपी में सिक्का चला करता था। जिसके वरिष्ठ नेता चौधरी अजीत सिंह का हाल ही में निधन हुआ है और उनके बेटे जयंत चौधरी ने उनकी गद्दी को संभाला है,आज उनके और अखिलेश यादव के गठबंधन से जुड़ी बड़ी खबर पर हम चर्चा करेंगें।

अखिलेश “जयंत” पर बड़ा दांव खेलने की तैयारी में हैं

देश भर में किसान आंदोलन की चर्चा है,और पिछले 6 महीनों से ये अनसुलझी पहेली बना हुआ है,अब गौर करने की बात ये है कि इस आंदोलन का नेतृत्व जो “टिकैत परिवार” कर रहा है,वो परिवार पश्चिम उत्तर प्रदेश के ज़िलें मुजफ्फरनगर के “सिसौली” गांव से आता है।

इस क्षेत्र में मुख्य तौर पर जाट,मुस्लिम, गुर्जर और दलित समाज की आबादी भरपूर है,इस पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक वक्त में रालोद का डंका बजा करता था,क्योंकि रालोद ही पश्चिम यूपी में राजनीतिक तौर पर लोगों की पहली पसंद हुआ करता था,लेकिन फिर 2013 में मुज़फ्फरनगर दंगा हुआ और सब कुछ बदल गया।

दरअसल अखिलेश यादव( Akhilesh Yadav) बीते 8 सालों की बनी स्थिति से सबक लेते हुए मंझे हुए राजनेता की तरह अपने फैसले ले रहे हैं,उन्होंने 2017 में कांग्रेस और 2019 में बसपा के साथ गठबंधन करने के बाद इन दोनों ही बड़े दलों से दूरी बनाते हुए रालोद पर दांव खेलने की तैयारी कर ली है।

पश्चिम यूपी को ध्यान में रखते हुए अखिलेश यादव ने पूर्व प्रधानमंत्री के पोते जयंत चौधरी ( Jayant Chaudhary) को “उपमुख्यमंत्री” के दावेदार की तरह पेश कर सकती है,ऐसा जानकारों की चर्चा मे है,क्योंकि पश्चिम यूपी में जाट समाज ,गुर्जर समाज और मुस्लिम समाज की मिली जुली आबादी करीबन 40 फीसदी जोड़ी जाती है,और कई सीटों पर तो ये आँकड़ा 55 से 60 फीसदी तक चला जाता है।

वहीं गौर करने वाली बात ये है कि यहां भाजपा को लेकर और कृषि बिलों को लेकर भारी नाराज़गी है,जिसका उदाहरण तब देखा गया जब केंद्रीय मंत्री और मुज़फ्फरनगर लोकसभा से सासंद संजीव बालियान का कई गांवों में भारी विरोध भी किया गया था।

जाट -मुस्लिम गठबंधन को फिर से एक जगह लाने की कोशिशें

अखिलेश यादव ये जानते हैं कि बीते 8 सालों में जाट समाज ने एक मुश्त होकर भाजपा का समर्थन किया है और मुस्लिम वोट कांग्रेस, बसपा और सपा में बंटा है जिसके कारण भाजपा 2014,2017 और फिर 2019 में वेस्ट यूपी का किला फतह करने में कामयाब हुई थी।

उन्होंने जयंत चौधरी को बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ जाट और मुस्लिम समाज को फिर से एक साथ साधने की तैयारियां कर ली हैं,जाट समाज मे जहां जयंत चौधरी को लेकर “बड़े चौधरी” के नाम से प्रसिद्ध अजीत चौधरी के निधन के बाद से और पुलिस द्वारा जयंत पर हुए लाठीचार्ज जैसी कई घटनाओं के बाद से सहानुभूति की एक लहर है।

वहीं वेस्ट यूपी का मुस्लिम वोट बहुत हद तक अखिलेश यादव की नज़र में सपा ही का साथ देगा जिसकी सबसे बड़ी वजह है कि बीती 2017 की सरकार में वेस्ट में मुस्लिम नेताओं को सम्मान देने में उन्होंने कोई कमी नही छोड़ी थी,जिसमे कैबिनेट मंत्री से लेकर राज्यमंत्री और दर्जा प्राप्त मंत्रालयों के तोहफे भी मुस्लिम समुदायों के नेताओं को दिए थे।

रालोद का भविष्य इस चुनाव पर टिका हुआ है

वहीं दूसरी तरफ रालोद को भी इस चुनाव और गठबंधन से बहुत उम्मीदें हैं,क्योंकि मौजूदा स्थिति में रालोद के पास,न तो कोई विधायक है और न ही कोई सांसद हैं और तो और खुद जयंत चौधरी भी दो लोकसभा चुनाव लगातार हार चुके हैं। लेकिन अब जयंत चौधरी ने किसान आंदोलन के बाद से अब तक ज़मीन पर उतर कर ज़बरदस्त मेहनत की है,किसान रैलियां हो या भरे स्टेज पर जाट-मुस्लिम समाज के बड़े नेताओं को गले मिलवाना हो,और बहुत हद तक पश्चिमी यूपी में रालोद के अध्यक्ष के इन कदमों ने उन्हें मज़बूत किया है।

यही बहुत बड़ी वजह है कि जयंत चौधरी को बड़ी ज़िम्मेदारी देते हुए अखिलेश यादव अपने लिए राजनीतिक ज़मीन तलाश रहे हैं,जो उनसे खो गयी थी,और “छोटे दलों” के साथ गठबंधन करने की रणनीति फिलहाल शानदार राजनीति कदम नज़र आ रही है।

देखना बस ये है कि यह है कि अब आगे क्या होगा,लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना यही है कि अखिलेश यादव का ये कदम उनके गठबंधन को फायदे में रखेगा, क्योंकि ज़मीनी हालात बदल रहे हैं। लेकिन ये हालात कितना बदल रहे हैं,कैसे बदल रहे हैं,ये अभी देखना बाकी है,जिसमे थोड़ा और इंतजार करना होगा।