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AMU के पूर्व शोध छात्र को उच्च न्यायालय ने निर्दोष साबित होने पर किया आतंक के अरोप से मुक्त

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उच्चतम न्यायालय ने साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में वर्ष 2000 में हुये विस्फोट की योजना बनाने के आरोप में 2001 से जेल में बंद अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व शोध छात्र गुलजार अहमद वानी को जमानत दे दी है. उसकी गिरफ्तारी 28 साल की उम्र में हुई थी और अब उसकी उम्र 44 साल हो चुकी है। इस ट्रेन में यह विस्फोट स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर हुआ था जब वह मुजफ्फरपुर से अहमदाबाद जा रही थी और कानपुर के नजदीक थी. इस विस्फोट में दस व्यक्तियों की जान चली गयी थी।

इससे पहले पिछले वर्ष अप्रैल में ही उसे 9 अगस्त 2000 को आगरा के सदर बाजार में स्थित एक घर में बम विस्फोट के मामले में बरी किया गया था, इसी विस्फोट के बाद खोजी दस्तों ने गुलज़ार वानी को गिरफ्तार और उस पर आरोप लगाया था कि वह स्वतंत्रता दिवस से पहले आगरा में बम धमाकों की साजिश अंजाम दे रहा था और वह अपने अन्य साथियों के साथ बम बनाने में व्यस्त था जब बम विस्फोट हो गया था।

गुलज़ार अहमद

गुलज़ार को 1 नवम्बर को छोड़ दिया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड की पीठ ने कहा कि वानी 16 साल से अधिक समय से जेल में है और 11 में से 10 मामलों में उसे बरी किया जा चुका है. पीठ ने कहा कि अभी तक अभियोजन के 96 गवाहों में से सिर्फ 20 से ही जिरह हो सकी है. न्यायालय ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि सभी आवश्यक गवाहों से जिरह 31 अक्तूबर तक पूरी कर ली जाये।
अब तक न जाने कितने मुस्लिमो को ऐसी यातनाएं झेलनी पड़ी है जिसमें 23 साल तक जेल में बेकसूर होने के बावजूद जीवन बिताने वाले निसार सबसे अधिक कारावास की सजा पाने वाले मुस्लिम रहे हैं, और अबतक भारत में कई हजार मुस्लिम कैदी अंडर ट्राइल हैं, जिनकी अगर सही समय पर सुनवाई होती तो वो बाहर होते, कईयों ने तो अबतक अपने कसुर से दोगुना सजा काट चुके हैं, पता नहीं कब समाप्त होगा ये खेल।