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विनोद खन्ना ने अपनी एक्टिंग की शुरुआत नेगेटिव रोल से की थी

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बॉलीवुड के सबसे हैंडसम अभिनेताओं में शुमार रहे विनोद खन्ना की 27 अप्रैल 2017 को लंबी बीमारी के चलते पिछले साल उनका निधन हो गया था. 70 और 80 के सुपरस्टार रहे विनोद खन्ना को हाल ही में मरणोपरांत हिंदी फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 को भारत आजाद होने से पूर्व पेशावर, पकिस्तान में हुआ था. लेकिन 1947 में भारत पकिस्तान विभाजन के वक्त वो पेशावर से मुंबई आ गए.यहाँ इनके पिता का टेक्सटाइल का बिज़नस था, इसलिए आर्थिक समस्या की ज्यादा तंगी नहीं थी, उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नासिक के एक बोर्डिग स्कूल से पूरी की,इसके बाद  सिद्धेहम कॉलेज से कॉमर्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. बचपन में बेहद शर्मीले स्वभाव के रहे विनोद खन्ना को एक दिन उनके टीचर ने जबरदस्ती कर के कहा कि तुम स्टेज पर एक्टिंग करोगे और उस दिन से उनको एक्टिंग का चस्का लग गया और वे एक एक्टर बनने का सपना पालने लगे.
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फिर जब उन्होंने घर में यह बात बताई की वे  एक्टर बनना चाहते हैं, लेकिन उनके पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा फिल्मों में जाये लेकिन उनकी माँ ने उनके पिता को मनाया और फिर विनोद खन्ना के पिता ने उनके सामने एक शर्त रख दी कि “उनके पास सिर्फ दो साल का वक़्त है अगर सफल हो गए तो ठीक वरना फिर उनको वापस अपने बिज़नस में आना पड़ेगा ” और विनोद खाना ने यह शर्त मंजूर कर दी, और फिल्मों में काम करने में जुट गए.
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विनोद खन्ना ने अपनी एक्टिंग की शुरुआत नेगेटिव रोल से की.1968 में सुनील दत्त की फिल्म ‘मन का मीत’ में विनोद खन्ना ने निगेटिव किरदार निभाया था जिसे काफी पसंद किया गया और उनके पास फिल्मों की लाइन लग गयी. इस फिल्म के बाद उन्होंने एक साथ 15 फ़िल्में साइन की. जिसमें पूरब और पश्चिम, आन मिलो सजना और मेरा गांव मेरा देश जैसी फिल्में शामिल थीं. 1971 की फिल्म ‘हम तुम और वो’ उनकी बतौर हीरो पहली फ़िल्म थी. 1973 में आई गुलज़ार की फिल्म ‘मेरे अपने’ काफी कामयाब रही. इसके बाद आई ‘अचानक’ ने उन्हें बतौर हीरो स्थापित कर दिया.
कुर्बानी, हेराफेरी, खूनपसीना, अमर अकबर एंथनी, मुकद्दर का सिकंदर जैसी फिल्मों के जरिये विनोद खन्ना का सितारा बुलंदियों पर जा पहुंचा. 1987 से 1994 तक वे बॉलीवुड के सबसे महंगे सितारों में से एक थे.अपने करियर के शीर्ष पर होने के बावजूद विनोद खन्ना का फिल्म इंडस्ट्री से मोहभंग हो गया और वे आध्यत्मिक गुरु ओशो के अनुयायी बन गए.उन्होंने ओशो के साथ लगभग 5 वर्ष बिताये.
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विनोद खन्ना का विद्रोही स्वभाव किसी बंदिश में रहने का आदि नहीं था. जल्द ही ओशो से उनका मोहभंग हो गया और 5 सालों बाद वो अपनी दुनिया में लौट आये. बॉलीवुड ने भी अपने इस स्टार का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से किया. वापसी के बाद उन्होंने मुकुल आनंद की इन्साफ में काम किया. ये फिल्म हिट रही और विनोद खन्ना की गाड़ी एक बार फिर चल पडी.
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अपने फिल्मी कैरियर में सफल रहे विनोद खन्ना के राजनीतिक कैरियर भी शानदार रहा.वर्ष 1997 और 1999 में वे दो बार पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से भाजपा की ओर से सांसद चुने गए.2002 में वे संस्कृति और पर्यटन के केन्द्रिय मंत्री भी रहे.सिर्फ 6 माह पश्चात् ही उनको अति महत्वपूर्ण विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बना दिया गया.
विनोद खन्ना ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में लगभग 150 फिल्मों में अभिनय किया.कैंसर की बीमारी के चलते 27 अप्रैल 2017 को उनका निधन हो गया.