मुग़ल बादशाह शाहजहाँ – जिनके शासनकाल में बनी कई ऐतिहासिक इमारतें

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5 जनवरी 1592 ईसवी को मुग़ल सल्तनत और दुनिया के आठ अजूबों में से एक “ताजमहल” बनवाने वाले अज़ीम बादशाह ” शाहजहां”(खुर्रम) की पैदाईश पाकिस्तान के लाहौर में हुई थी, जिनका असल नाम खुर्रम था, और जिनको जवानी में ही उनके बाप का जानशीन कहा जाने लगा था,कहा जाता है के शाहजहां का दौर मुग़ल साम्राज्य का सुनहरा दौर था, शाहजहाँ को मुगल शासकों में से सबसे प्रमुख शासक माना जाता है।
वह एक बहादुर, बुद्धिमान और दूरदर्शी शासक थे. आप को बचपन से ही तालीम हासिल करने का शौक़ था, और साथ ही आपने जंगी तरबियत भी हासिल की, अकबर ने जिस क्षेत्र की स्थापना की, उसे शाहजहाँ ने विस्तारित, संरक्षित और कुशलता से शासित किया। उनके समय में शासन अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण और समृद्ध था, लड़ाईयाँ कम होती थीं और राजकोष भरा हुआ था तथा वहाँ के लोग खुश और संतुष्ट रहते थे। अपने पिता के आदर्शों का पालन करते हुए, उन्होंने भेद भाव रहित एक अच्छे न्यायाधीश और प्रजा के लिए एक कुशल शासक के रूप में अपनी छवि स्थापित कर ली थी। पेरिस, फ्रांस, इटली, पुर्तगाल और इंग्लैंड जैसे विभिन्न विदेशी देशों के साथ भी उनके संबंध अच्छे थे। वह निश्चित रूप से उत्कृष्ट सैन्य और प्रशासनिक कौशल के साथ एक महान राजा थे।
शाहजहाँ के प्रारम्भिक शासनकाल से ही राज्य के राजस्व कोष में बहुत तेजी से उन्नति होने लगी थी। आपकी शादी 1607 ईसवी में अर्जूमंद बानो बेगम से हुई, शादी के बाद शाहजहां ने अपनी बेगम को “मुमताज़ महल” का खिताब दिया, उन्होंने ने कई यादगार इमारतें बनवाई जिनमें सबसे मशहूर भारत के शहर आगरा में यमुना नदी के किनारे पर स्थित “ताजमहल” जिसे उन्हों ने अपनी बीवी की मोहब्बत में यादगार के तौर पर बनवाया था, इसी के साथ आगरा की “मोती मस्जिद” और दिल्ली की मशहूर “जामा मस्जिद” भी उनके ही दौर ए हुकूमत में में बनी, उनके द्वारा बनाया गया “तख़त ता ऊस” की कीमत आज लाखों डॉलर में बताई जाती है, इसी तरह शाहजहांबाद की बुनियाद भी आप ने ही रखी, दिल्ली के लाल क़िला में दीवान ए आम और दीवान ए ख़ास का शुमार शाहजहां की ख़ास तामिरात में होता है, उन के दौर में दिल्ली का महल मश्रीक़ का अज़ीम तरीन महल कहा जाता था.
1657 ईसवी में शाहजहां के बीमार पड़ते ही उनके बेटे औरंगज़ेब र. आ ने बगावत कर दी, और सत्ता अपने हाथ में ले ली, और अपने बाप शाहजहां को आगरा के क़िला में नज़र बंद कर दिया, और वहीं 31 जनवरी 1666 ईसवी को 74 साल की उम्र में आप की मौत हो गई, और आपको आपकी बेगम मुमताज़ महल के पहलू में हमेशा के लिए लिटा दिया गया, कहते हैं के शाहजहां की मौत के वक़्त मुग़ल साम्राज्य 75 करोड़ एकड़ में फैली हुई थी, यह तो रही शाहजहां के जीवन की बातें, अब बात करते हैं मौजूदा दौर में हो रही बातों पर जो मुग़ल बादशाहों के बारे में बोली जाती हैं या यूं कह लें के भोली भाली जनता को भ्रमित किया जाता है, जो लोग मुग़ल शासकों को आक्रमणकारी कहते हैं,उन्हें यह देखना चाहिए के किया सच में यह बादशाह ऐसे थे, किया सच्चे में इनके होने से भारत को नुकसान हुआ, या उन्हों ने भारत देश को लुटा, अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो हमें कुछ और नज़र आएगा.
मशहूर जर्मन – अमरीकी इतिहासकार एंड्रे गंडर फ्रैंक ने ‘रीओरिएंट: ग्लोबल इकॉनमी इन द एशियन एज’ नाम की किताब 1998 में लिखी थी. फ्रैंक का कहना था कि अठारहवीं शताब्दी के दूसरे हिस्से तक भारत और चीन का आर्थिक रूप से दबदबा था. ज़ाहिर है इसी दौर में सारे मुस्लिम शासक भी हुए मशहूर इतिहासकार हरबंश मुखिया कहते हैं के बाबर और हुमायूं को छोड़ दिया जाए तो अकबर समेत जितने मुग़ल शासक हुए सबका जन्म यहीं हुआ था. ये कभी विदेश नहीं गए.
मुखिया आगे कहते हैं, ”हर शासक अपने साम्राज्य का विस्तार करता है शाहजहां के द्वारा बनाई गई जो भी इमारतें हैं वह आज भारत में ही हैं, और भारत सरकार हर साल करोड़ों रुपए उस से कमाती है, जो लोग शाहजहां को लुटेरा या गद्दार कहते हैं उनको यह जानना चाहिए के शाहजहां के बेटों में दाराशिकोह ने ही भगवद गीता और योगवशिष्ठ उपनिषद् और रामायण का अनुवाद फारसी में करवाया.
ज़रूरत इस बात की है के इन बादशाहों के द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को सरकार जनता के सामने लाए,और यह भी बताएं के प्रधानमंत्री 15 अगस्त को जिस लाल क़िला से पूरे देश को संबोधित करते हैं वह भी उन्हीं मुगलों के द्वारा बनाया गया है,इस लिए बतौर प्रधानमंत्री होने के नाते यह उनका फ़र्ज़ है के वह जनता को देश के लिए मुगलों का समर्पण बताएं, तभी हम हम दुनिया में विश्व गुरु बन पाएंगे.