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नज़रिया – "लिंचिंग की बढ़ती घटनाएं", क्या भारत का "हिंदू तालिबानिकरण" हो रहा है?

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स्वामी अग्निवेश पर हमला इस बात को प्रमाणित करने के लिये काफ़ी है कि  यह सरकार ना तो राष्ट्रवादी है, ना ही समाजवादी, ना ही हिंदूवादी, यह सिर्फ़ अवसरवादी है। क्यूंकि इस सरकार को सिर्फ़ ख़ुद के मफ़ाद से मतलब है, इसे सिर्फ़ सत्ता प्यारी है,और इस के लिये यह हर तरह के हथकंडे अपनाएगी।
याद रखो जो क़ौम अपने बुज़ुर्गों की इज़्ज़त नहीं करती है वह ऐसे बर्बाद होती है कि एक दिन उनके जिस्म के राख को भी समेटने वाला कोई नहीं होगा।
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आज तुम भीड़ का रूप धारण कर के अपना वर्चस्व स्थापित करने का भरसक प्रयास कर रहे हो, एक दिन आएगा जब तुम भी ऐसे ही अकेले और तन्हा होगे और तुम्हारे सामने हज़ारों की भीड़ होगी, तब तुम को सिर्फ़ एक ही चीज़ की ख्वाहिश होगी कि  काश मेरा लहू बहने से बच जाए, मेरी आत्मा मेरे जिस्म का साथ ना छोड़ें लेकिन तब मौत के फ़रिश्ते तुम पे हंस रहे होंगे, और तुम भी पंचतत्व में विलीन हो जाओगे।
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और फिर कुछ लोग तुम्हारे घर आएंगे, तुम्हारे माता पिता को प्रोत्साहन देंगे (महज़ दिखावा) कुछ पैसों की ख़ैरात तुम्हारे पिता के मुंह पर दे मारेंगे,और फिर समय का पहिया अपनी चाल चलता चला जाएगा,और वही सरकार जिनके लिये तुमने अपनी जान तक को क़ुर्बान कर दिया तुम्हें ऐसे अपने मन मस्तिष्क से निकाल बाहर करेगी जैसे दूध से मक्खी।
हाँ, मेरी मनोकामना है कि ऐसा एक दिन ज़रूर आये जब तुम भी ऐसी ही किसी अनजान भीड़ का शिकार बनो, अचानक से तुम पर लात घूंसों की बरसात होने लगे और तुम पूरी ताक़त से मदद के लिये चिल्लाओ, ख़ुद को बेक़सूर बताते बताते तुम्हारी कंठ सूख जाए लेकिन कोई सुनने वाला ना हो। आज जिस भीड़ को लीड तुम कर रहे हो कल उसी भीड़ के हाथों एक गुमनाम मौत तुम्हारा भी मुक़द्दर बने।

आख़िर यह लिंचिंग की घटनाएं क्यूं हो रही हैं?

पुणे के मोहसिन से शुरू होकर अखलाक, अलीमुद्दीन, पहलु खान, जुनैद और अफराज़ुल से शुरू हुई यह घटना अब अपने चरम पर पहुँच चुकी है। कल तक इसका निशाना सिर्फ़ मुसलमान थे उसमें से भी आम आदमी, लेकिन यह इतना विकराल रूप ले लेगा के ख़ुद हिंदूवादी संगठन एक हिंदू और वह भी स्वामी जो धर्मों की रक्षा करते हैं उन पर भी इस प्रकोप का साया पड़ गया, आज यह समाचार पढ़ कर मुझे अजीब सी बेचैनी ने घेर लिया है।
मैं यह सोच सोच कर परेशान हूँ कि आख़िर हमारा देश की दिशा में सफ़र कर रहा है? आख़िर किस शाइनिंग इंडिया की बात हो रही है? और किस इंक्रीडिबल इंडिया का राग अलापा जा रहा है? और सबसे बड़ी शर्म की बात तो यह है कि हमारे प्रधानमंत्री ने कई बार खुले मंच से ऐसे तत्वों पर सख़्त रुख़ अपनाया है, कई बार उन्हों ने ऐसी घटनाओं पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
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प्रधानमंत्री ने साफ़ शब्दों में कहा है के इस तरह की घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जाएंगी, सुप्रीम कोर्ट ने ख़ुद ऐसी घटनाओं का संज्ञान लिया है और बहुत सख़्ती से कहा है के ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये हर राज्य अपने यहाँ एक नोडल अफ़सर की बहाली करे और इस बात को सुनिश्चित करे के आगे से ऐसी घटनाएं नहीं हों।
लेकिन हंसी आती है कि जिस पार्टी ने पूर्ण बहुमत से एक रिकॉर्ड स्थापित किया और जिस प्रधानमंत्री के चर्चे पूरे विश्व में थे, जिसने इस देश को केवल 60 महीने में दुनिया का सबसे बलवान देश बनाने का वादा किया था, और जिसके फ़ैसले पत्थर की लकीर का दर्जा रखते थे आज ऐसा क्या हुआ कि बार – बार सचेत करने के बाद भी कुछ असमाजिक तत्व लगातार इन घटनाओं को अंजाम देते नज़र आ रहे हैं।
परेशानी का सबब तो ये है कि ना तो सरकार कुछ कर रही है और ना ही विश्व का सबसे बलवान प्रधानमंत्री कुछ कर पा रहा है। क्या इस से यह समझा जाए कि  प्रधानमंत्री का आशीर्वाद इन्हें हासिल है? क्या ऐसे लोगों को सरकार की खुली छूट दी गई है? इस बात को बल इस लिये भी मिलता है क्यूंकि कुछ दिन पहले ही ऐसे लोगों को मौजूदा सरकार के एक मंत्री जयंत सिंहा फूलों का माला पहना कर स्वागत करते नज़र आए हैं,और जब उनसे सवाल किया जाता है तो एंड शण्ड बकते नज़र आते हैं और अपने इस काम को ग़लत भी नहीं कहते हैं।
वैसे स्वामी अग्निवेश पर हमला इस बात को भी दर्शाता है के अगर आपकी (जनता) विचारधारा हमारी (सरकार) की विचारधारा से टकराई तो फिर आप का ऐसा ही हश्र होगा। यह तो सीधे सीधे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है जो हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसे हमारे संविधान ने हमें दिया है, तो क्या यह समझा जाए के अब सीधे सीधे देश के संविधान पर हमला हो रहा है और क्या इसे बदलने की कोशिश हो रही है?
अगर ऐसा है तो फिर देश धीरे धीरे अंधकार में जा रहा है और इस से देश के अस्तित्व पर ख़तरा मंडरा रहा है, जिसे हमें रोकना ही होगा नहीं तो आने वाली नस्लें हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी..
क्यूंकि

उठेगा धुंआ तो आएंगे घर कई ज़द में
यहाँ पर सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है