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दर्द के साये में जिसने लोगों को हंसना सिखाया

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एक्टिंग के क्षेत्र में दर्शकों को हंसाना सबसे मुश्किल काम माना जाता है.चार्ली चैपलिन एक्टिंग में कॉमेडी के क्षेत्र का वो नायक है,जिसे देखने के बाद आज भी लोगों के चेहरे हंसी से झलक उठते हैं.चार्ली चैपलिन ऐसे कालकार थे जिन्होंने बिना एक शब्द बोले पुरी दुनिया को हंसाया. ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के उस दौर में  उन्होंने दुनियाभर में अपनी एक्टिंग में कॉमेडी के जलवे बिखेरे.
चार्ली का जन्म 16 अप्रैल 1889 को लंदन में हुआ था.उनका बचपन गरीबी और अभावों में गुजरा. 9 वर्ष की उम्र के पहले ही उन्हें दो बार एक वर्कहाउस में काम करने के लिए भेजा गया. उनकी मां एक स्टेज परफॉर्मर थीं.चार्ली ने बहुत कम उम्र से ही स्टेज पर एक कॉमेडियन के रूप में परफॉर्म करना शुरू कर दिया.वो गीत भी गाते थे. जल्दी ही उन्हें लोकप्रियता मिलने लगी. 19 वर्ष की उम्र में उन्हें प्रेस्टिजियस फ्रेड कार्नो कंपनी ने साइन कर लिया और वो अमेरिका चले गए. अमेरिका में वे शीघ्र ही फिल्मों से जुड़ गए. 1914 में की-स्टोन स्टूडियो की फिल्म में वे पहली बार आए और इसके बाद लगातार सफलता की नई बुलंदियों को छूते चले गए. 1919 में उन्होंने ‘यूनाइटेड आर्टिस्ट’ नाम से एक डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी बनाई, जो उनकी फिल्मों के निर्माण से लेकर व्यवसाय तक पर पूरा नियंत्रण रखती थी.1940 का दशक उनके जीवन में विशेष हलचल से भरा था.उनकी फिल्मों के कंटेंट और विचारधारात्मक झुकाव को देखते हुए उन्हें कम्युनिस्ट कहा जाने लगा. नाजीवाद का विरोध करते हुए उन्होंने 1940 में ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ नाम की फिल्म बनाई, जिसमें उन्होंने हिटलर का मजाक उड़ाया. चार्ली  का विरोध नाजीवादियों-फासीवादियों ने किया, पर पूरी दुनिया से उन्होंने प्यार और सराहना पाई.
चार्ली बहुमुखी प्रतिभा के धनी फिल्मकार थे. उन्होंने अभिनय के अलावा अपनी ज्यादातर फिल्मों का लेखन, निर्माण, निर्देशन और संपादन ख़ुद किया.1921 से 1967 तक लगभग पांच दशक के फिल्मी करियर में उनकी सर्वाधिक चर्चित फ़िल्में थीं – ‘द किड’, ‘अ वुमन इन पेरिस’, ‘द गोल्ड रश’, ‘द सर्कस’, ‘सिटी लाइट्स’, ‘मॉडर्न टाइम्स’, ‘द ग्रेट डिक्टेटर’, ‘लाइमलाइट’, ‘अ किंग इन न्यूयॉर्क’, ‘अ काउंटेस फ्रॉम हांगकांग’ आदि.अपनी फिल्मों से उन्होंने बेशुमार दौलत भी कमाई.
चार्ली चैपलिन ने चार शादियां की थीं. इनका वैवाहिक जीवन खुशहाल नहीं था.उनके कई प्रेम संबंधों की बात सामने आती रही है.जीवन के अंतिम वर्षों में ये गंभीर रूप से बीमार रहे.आखिरकार सन 1976 में 88 वर्ष की उम्र में सारी दुनिया को हँसाने वाला यह कलाकार दुनिया छोड़कर चला गया.
चार्ली को जीवन में अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया. 1929 में ‘द सर्कस’ के लिए उन्हें अकादमी मानद पुरस्कार दिया गया.1972 में लाइफ टाइम अकादमी पुरस्कार से अलंकृत किया गया.1952 में सर्वोत्तम ओरिजनल म्युजिक स्कोर पुरस्कार लाइमलाइट के लिये प्राप्त हुआ. 1940 में द ग्रेट डिक्टेटर में किये अभिनय के लिये सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार, न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक सर्कल अवार्ड से सम्मानित किया गया. 1972 में करिअर गोल्डन लायन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
दुनिया के कई राजनेता इनकी अभिनय कला और विचारों से काफी प्रभावित थे.पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू चार्ली के बड़े प्रशंसकों में थे.कहते हैं कि भगत सिंह और उनके साथियों को भी चार्ली चैपलिन की फिल्में देखना काफी पसंद था.1931 में गोलमेज सम्मेलन के दौरान चार्ली गांधी जी से मिलने गए थे जहाँ दोनों के बीच काफी लंबी बातचीत हुई थी.
चार्ली का विश्व सिनेमा पर इतना बड़ा प्रभाव था कि भारतीय सिनेमा के ग्रेट शोमैन कहे जाने वाले राज कपूर ने ‘श्री 420’, ‘अनाड़ी’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी कुछ फिल्मों में चार्ली को हिंदी सिनेमा के परदे पर पुनर्जीवित करने की कोशिश की थी.
चार्ली की प्रसिद्धी का आलम ये है कि, वर्ष 1995 में ऑस्कर अवार्ड के दौरान द गार्जियन अखबार ने एक सर्वेक्षण करके ये जानना चाहा कि फिल्म समीक्षकों और दर्शकों का सबसे पसंदीदा हीरो कौन है, तो सर्वे रिपोर्ट देखकर आश्चर्य हुआ कि, चार्ली की मृत्यु के दो दशक बाद भी चार्ली अधिकतर लोगों के पसंदीदा हीरो थे.
चार्ली चैप्लिन का जीवन एक ऐसी कहानी है जो दर्द के साये में भी हास्य का सबक सिखाती है. आज भले ही चार्ली इस दुनिया में न हो लेकिन उनका अभिनय आज भी कई उदास चेहरे पर मुस्कराहट ला देता है.उनके मुताबिक,

“My pain may be the reason for somebody’s laugh. But my laugh must never be the reason for somebody’s pain. “

“मेरा दर्द किसी के लिए हंसने की वजह हो सकता है.पर मेरी हंसी कभी भी किसी के दर्द की वजह नहीं होनी चाहिए.”